गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध माना


सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध माना



नई दिल्ली। पिछले चार साल से भारत में अपनी मर्जी से समलैंगिक संबंध बनाना अपराध नहीं था, लेकिन आज के बाद ऐसा नहीं होगा। अगर कोई समलैंगिक संबंध बनाता पकड़ा जाता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिक संबंधों को अपराध माना है।


जुलाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटिगरी से बाहर कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पलट दिया। विभिन्न धार्मिक संगठनों ने समलैंगिक संबंध को देश के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया था और वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए थे।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

कोलगेट में फिर से फंसी यूपीए सरकार Government again trapped in Colgate



कोलगेट में फिर से फंसी यूपीए सरकार

कुन्दन पाण्डेय

सी
बीआइ ने ओड़िशा में 2005 के तालीबारा कोयला ब्लाक आवंटन मामले में देश के ख्यात उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला व पूर्व केंद्रीय कोयला सचिव पीसी पारेख के खिलाफ कोयला मामले में 14वीं एफआईआर दर्ज कर दी है। इसमें पारेख और बिड़ला को आपराधिक षडयंत्र का आरोपी बनाया गया है। इसके बाद पारख ने दावा किया कि आखिरी फैसला प्रधानमंत्री ने लिया था, इसलिए उन्हें भी आरोपी बनाया जाना चाहिए।

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

मुस्लिम आरक्षण की देशद्रोही सियासत Traitor politics of Muslim reservation



मुस्लिम आरक्षण की देशद्रोही सियासत


 मीयत ए उलेमा ए हिंद के प्रमुख महमूद मदनी ने 
जयपुर में मुस्लिम आरक्षण पर बोलते हुए मुसलमानों के लिए कम से कम 10 प्रतिशत आरक्षण की मांग की, जो कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। बिना संविधान की हत्या किए, ऐसा करना संभव नहीं है। सऊदी अरब के विदेश मंत्री सऊद अल-फैजल ने एक बार कहा था कि भारतीय मुसलमान कोई अल्पसंख्यक नहीं हैं, जिन्हें किसी बाहरी मदद की जरूरत हो। वे स्वयं सशक्त और समर्थ हैं।



राजनीतिक पंडित यह मानते हैं कि लोकसभा की 543 में से 218 सीटों पर मुस्लिमों की आबादी तकरीबन 10 फीसदी है। 30 से 35 सीटों पर वे करीब 30 प्रतिशत हैं। ये 30 प्रतिशत वोट थोक में जिस प्रत्याशी को मिलेंगे, उसकी जीत सुनिश्चित होती है। लगभग 38 सीटों पर थोक में पड़ने वाला मुस्लिम वोट 21 से 28 प्रतिशत तक है।

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

सचिन तेंदुलकर : हिमालयन रिकॉर्ड, हिमालयन व्यक्तित्व Sachin Tendulkar: Himalayan records, Himalayan personality

सचिन तेंदुलकर : हिमालयन रिकॉर्ड, हिमालयन व्यक्तित्व



चिन का क्रिकेट में केवल कद और व्यक्तित्व ही हिमालय की तरह नहीं है, बल्कि व्यक्तित्व, शालीनता, जीवटता और जीवंतता भी हिमालय की तरह है। उनके रिकॉर्ड के बारे में शब्दों में लिखना अत्यंत दुष्कर जान पड़ता है।



दुनिया भर के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना 200वां टेस्ट मैच खेलने के बाद क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लेंगे। क्रिकेट में एकमात्र महाशतक बना चुका क्रिकेट का यह भगवान क्रिकेट के भक्तों को अब मैदान पर दर्शन नहीं देगा।

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

राष्ट्रवाद को धर्म-जाति से न जोड़ा जाए Nationalism must not be associated with race

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में राष्ट्रवाद को किसी धर्म-जाति से जोड़े जाने पर सख्त एतराज जताते हुए कहा है कि हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई राष्ट्रवाद जैसे शब्दों का प्रयोग संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

केंद्र व चुनाव आयोग लोगों की धार्मिक भावनाओं को अपने चुनावी मकसद के लिए भड़काने और उसे धार्मिक राष्ट्रवाद के साथ जोड़ने वाले सियासतदानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। 



मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश Currently Britain's slave country


पिटकेयर्न

ब्रिटिश उपनिवेश 1767 से, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अमरीका के बीच प्रशान्त महासागर में स्थित।

भौगोलिक स्थिति - यह क्षेत्र चार द्वीपों पिटकेयर्न, हैण्डरसन, डयूसी और ओइनो से मिलकर बना है। 1767 में रॉबर्ट पिटकेयर्न ने इसकी खोज की। 1790 से पूर्व यह निर्जन स्थान था।

महत्व व वर्तमान स्थिति- आय का जरिया डाक टिकटों और इण्टरनेट डोमेन डॉट पीएन की बिक्री है। नियमित बजट नहीं। प्राथमिक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य। लोग राजनीतिक भविष्य का पुननिर्धारण चाहते हैं।

अब वोट का सुबूत भी देगी ईवीएम

अब वोट का सुबूत भी देगी ईवीएम

नई दिल्ली। सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का मतदाताओं को हक देने के बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक और अधिकार मुहैया कराया। वोट डालने के बाद मतदाता अब पर्ची पर तस्दीक कर सकेंगे कि उनका वोट सही जगह गया है या नहीं।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई राइट टू रिजेक्ट पर मुहर Supreme Court gives voters the right to reject


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अहम फैसले में मतदाता को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार देने पर अपनी मुहर लगा दी। इस फैसले के तहत अगर चुनाव में मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो उसे वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नन ऑफ द एबव यानी उपरोक्त में कोई नहीं के विकल्प पर मुहर लगा सकता है।

-मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि एक व्यक्ति को संविधान वोट डालने का अधिकार और उसको खारिज करने का अधिकार भी उसकी अभिव्यक्ति को दर्शाता है।

दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण, शुक्रवार 27 सितंबर 2013, पेज 1


साभार दैनिक जागरण

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

ज्ञान महाशक्ति कब बनेगा भारत? When will India Knowledge Superpower?

ज्ञान महाशक्ति कब बनेगा भारत?


सो
शल इंफ्रास्ट्रक्चर का सबसे महत्वपूर्ण अंग शिक्षा है। भारत में शिक्षा 

विदेशों से बहुत बेहतर स्थिति में नालंदा विश्वविद्यालय के जीवित रहने तक थी। भारत आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। सैन्य महाशक्ति बनने की ओर तेजी से अग्रसर है, लेकिन भारत ज्ञान महाशक्ति कब बनेगा? इसे केंद्र सरकार नहीं बता पा रही है। बिना शिक्षा, नवीकरण, शोध और विकास के भारत कब तक और कैसे आर्थिक एवं सैन्य महाशक्ति बना रहेगा? यह आसानी से समझा जा सकता है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की योजना भारत में 2017 तक 200 नए विश्वविद्यालय स्थापित करने की है। वे चाहते हैं कि देश में हाईस्कूल से विश्वविद्यालय जाने वाले छात्रों के मौजूदा प्रतिशत 15 को इससे बढ़ाकर 30 फीसदी पर पहुंचाया जाए। इसके लिए वृहद पैमाने पर भारत में शैक्षिक अधोसंरचना की आवश्यकता होगी। इसके लिए बड़ी धनराशि की भी आवश्यकता होगी।

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

नरेंद्र मोदी (नमो) की ताजपोशी के मायने! Narendra Modi (namo) crowned counts!

     नरेंद्र मोदी (नमो) की ताजपोशी के मायने!

20 दिसंबर 2012 को मोदी ने गुजरात में विधान सभा चुनाव जीतने की हैट्रिक लगाई। मोदी की स्थिति पार्टी और पार्टी से बाहर देश में '32 दांतों के बीच जीभ से भी बुरी' है। इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में मोदी ने विजय की हैट्रिक लगाई। उन्होंने भारत में पहली बार 3-डी तकनीक से एक साथ 50 जगहों पर सजीव भाषण (लाइव स्पीच) दिया। हैट्रिक विजय के बाद से ही उनके भाजपा के पीएम उम्मीदवार होने की संभावना बढ़ गई थी।


इससे लगभग 8 माह पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी से 10 अप्रैल 2012 को गुजरात दंगों के मामले में क्लीन चिट मिल गई। क्लीन चिट मिलने के बाद संघ के मुखपत्र पाञ्चजन्य में मोदी की और कितनी अग्नि परीक्षाएं शीर्षक से छपे संपादकीय में संघ ने कहा था कि देश अब नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर राष्ट्रीय भूमिका निभाते हुए देखना चाहता है। इससे पहले टाइम मैगजीन ने भी नरेंद्र मोदी पर कवर स्टोरी प्रकाशित कर मोदी का कद बढ़ाया था।

बुधवार, 11 सितंबर 2013

विक्रम संवत् से भारतीय माह और इसके अनुसार ग्रिगेरियन कैलेंडर के माह-दिन

Hindi Months
Accordance Gregorian Calendar' Months
Days
Chaitra
March - April
31
Vaisakh
April - May
30
Jyestha
May - June
31
Ashadh
June - July
30
Shravan
July - August
31
Bhadrapad
August - September
31
Ashvin
September - October
30
Karttik
October - November
31
Margashirsha
November - December
30
Pousha
December - January
31
Magh
January - February
31
Phalgun
February - March
30

सोमवार, 9 सितंबर 2013

चीनी ड्रैगन के कसते शिकंजे की अनदेखी खतरनाक The avoidance of chinese dragon vise is dangerous for India

मीडिया रिपोर्टों के हवाले से खबर है कि चीनी ड्रैगन ने फिर लद्दाख के पास भारतीय सीमा में घुसपैठ की है। ड्रैगन बार-बार भारतीय सीमा में जो अतिक्रमण कर रहा है, उसका आधार उसकी ताकत है। वह युद्ध न लड़ने पर सेना में जंग लग जाती है’ वाली अमेरिकी अवधारणा को अपनी सेना पर लागू करने का प्रयत्न कर रहा है। तिब्बत को हड़पने के बाद भी उसका अपने सभी पड़ोसी देशों यथा भारत, जापान, रूस, ताइवान, वियतनाम आदि से सीमा विवाद लगातार खबरों में बना ही रहता है।

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

नापाक हरकतों की गवाह नियंत्रण रेखा, एलओसी


clipहमारे दो पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और चीन के साथ लगती सीमा का विवाद जब-तब उलझ जाता है. सीमा पर तनाव और संघर्ष विराम के उल्लंघन की खबरों में लाइन ऑफ कंट्रोल’ (एलओसी) और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (एलएसी) की भी चर्चा होती है. इन दोनों नियंत्रण रेखाओं के बारे में जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज..
पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन और भारतीय चौकियों पर गोलीबारी की खबरों के बीच दोनों देशों के बीच की नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलओसी) भी सुर्खियों में है


दोनों देशों के बीच की सबसे विवादित जगह मानी जाती है लाइन ऑफ कंट्रोल. यह एक ऐसी लाइन है, जिसके इस पार तक नियंत्रण कायम करने की पाकिस्तान की नापाक कोशिशों के कारण दोनों देशों की सेनाएं चार बार आमने-सामने हो चुकी हैं.


एलओसी (नियंत्रण रेखा) को सीजफायर लाइनभी कहते हैं. तीन जुलाई, 1972 को शिमला समझौते के बाद इसे लाइन ऑफ कंट्रोलका नाम दिया गया. जम्मू एवं कश्मीर के जिस भाग पर भारत का नियंत्रण है, उसे स्टेट ऑफ जम्मू एंड कश्मीर कहते हैं, और जिस इलाके पर पाकिस्तान का नियंत्रण है, उसे गिलगित-बलूचिस्तान तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है.


नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गयी 740 किलोमीटर लंबी एक काल्पनिक सीमारेखा है. जबकि दोनों देशों के बीच इस समय जो सीमारेखा है, उसे 1947 में दोनों देशों के बीच हुए युद्ध विराम के बाद तत्कालीन नियंत्रण स्थिति पर खींचा गया था. यह आज भी लगभग वैसी ही है.


सीमा पार से बार-बार हमले

पाकिस्तान ने शुरू से ही नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमारेखा नहीं माना है. कश्मीर पर नियंत्रण करने के लिए उसने कई बार भारत पर आक्रमण किया. वर्ष 1947 में जब सीमारेखा खींची गयी थी, तभी से पाकिस्तान ने इस सीमा के पार से हमले जारी रखे. सीमा के विवादास्पद मसलों को लेकर ही 1965 में दोनों देशों के बीच जंग हुई. 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद पाकिस्तान ने फिर से लड़ाई छेड़ दी.


इस बार भारतीय सेना ने लद्दाख के उत्तरी इलाके में 300 वर्गमील तक अपना कब्जा जमा लिया. शिमला समझौते के बाद दोनों देशों ने लाइन ऑफ कंट्रोल को फिर से बहाल किया था. हालांकि, बार-बार मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान शांति से नहीं बैठा और उसने वर्ष 1999 में सर्दियों के मौसम में कारगिल की पहाड़ियों पर अपनी सेना तैनात कर दी. मालूम हो कि सर्दियों में दोनों देशों की सेनाएं बर्फीली पहाड़ियों से दूर रहती हैं. 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल पर कब्जा करके एक बार फिर से सीजफायर का उल्लंघन किया.

भारत ने लगायी बाड़

पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की लगातार हो रही कोशिशों को नाकाम करने के इरादे से भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल की तकरीबन 740 किलोमीटर लंबी लाइन के साथ-साथ शेष साढ़े पांच सौ किलोमीटर लंबी सीमा पर भी कटीले तारों की बाड़ लगा कर घेराबंदी कर दी है. भारत ने एलओसी के 150 गज के दायरे के भीतर 8 से 12 फुट ऊंची कंटीले तारों की बाड़ से घेराबंदी की है.


इस बाड़ में विद्युत प्रवाहित की जाती है, ताकि कोई इसे काटने या लांघने की जुर्रत नहीं कर सके. इसके अलावा, इसमें स्पीड सेंसर, थर्मल इमेजिंग और सायरन लगे हैं. पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की किसी भी तरह की कोशिश को नाकाम करने के लिए ये बाड़ काफी हद तक कामयाब समङो जाते हैं.


हजारों जवानों ने दी कुर्बानी

पाकिस्तान और भारत के बीच नियंत्रण रेखा को लेकर जो विवाद है, उस पर भारत का रुख हमेशा से नरम रहा है. भारत ने कभी भी एलओसी को पार नहीं किया है. लाइन पर कंट्रोल को कायम रखने के लिए भारत के हजारों जवान शहीद हो चुके हैं. कारगिल की जिस लड़ाई में एलओसी के इस पार पाकिस्तान का नियंत्रण खत्म करने के लिए भारतीय सेना ने जवाबी हमला बोला था, उसमें महज एलओसी पर ही 400 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे.


रेडक्लिफ लाइन

विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान की सीमारेखा तय करने के लिए 17 अगस्त, 1947 को रेडक्लिफ लाइन की घोषणा की गयी. इस लाइन को बॉर्डर कमीशन के अध्यक्ष सर क्रिल रेडक्लिफ ने तय किया था. आजादी से महज एक माह पूर्व 15 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद ने 15 अगस्त को देश भारत को आजाद करने की तिथि मुकर्रर की थी. साथ ही, दोनों देशों के बीच सीमारेखा तय करने के लिए रेडक्लिफ लाइन तय की गयी.


आठ जुलाई को भारत आने के बाद महज पांच सप्ताह में रेडक्लिफ ने सीमा तय कर दी. इसके निर्धारण के लिए आंकड़े जुटाने के मकसद से वे माउंटबेटन से मिलने के बाद लाहौर और कलकत्ता की यात्र पर गये थे.


इसके साथ ही रेडक्लिफ ने पंडित जवाहर लाल नेहरू और जिन्ना से भी मुलाकात की थी. बलूचिस्तान और सिंध जैसे मुसलिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिये गये. पंजाब का पश्चिमी हिस्सा भी पाकिस्तान को दिया गया, तो वहीं पूर्वी हिस्सा भारत को.


पाक अधिकृत कश्मीर

देश की आजादी के कुछ ही समय बाद वर्ष 1947 में ही पाकिस्तानी सेना के इशारों परपख्तून कबायलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया था. उसके बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराज हरि सिंह ने भारत सरकार के साथ एक समझौता किया. इस समझौते के तहत भारत सरकार से सैन्य सहायता मांगी गयी और इसके बदले में जम्मू-कश्मीर को भारत में मिलाने की बात कही गयी.


भारत ने इस समझौते पर अपनी सहमति प्रदान करते हुए उस पर हस्ताक्षर कर दिया. उस समय पाकिस्तान से हुई लड़ाई के बाद कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया. कश्मीर का जो हिस्सा भारत से सटा हुआ था, वह जम्मू-कश्मीर के नाम से भारत का एक प्रांत बन गया. दूसरी ओर, कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सटा हुआ था, उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना गया.


भारत इसे पाकिस्तान के कब्जेवाला कश्मीर कहता है, जबकि पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर कहता है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस इलाके को पाकिस्तान के शासनवाला कश्मीर कहती हैं. भारत का यह मानना है कि पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर उसी की सरजमीं का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है.

- 1990 में शुरू हुआ था पाकिस्तान के साथ लगती नियंत्रण रेखा पर बाड़ लगाने का काम
- 2004 में बाड़ पूरी तरह से तैयार हो गयी. सेना का मानना है कि बाड़ लगाने से घुसपैठ 80 फीसदी कम हुई है


सियाचिन ग्लेशियर
सियाचिन ग्लेशियर करीब 18,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र माना जाता है. यहां सैन्य गतिविधियों को बंद करने के मामले में भारत-पाकिस्तान के बीच कई बार बाचतीच हुई है. उजाड़, वीरान और बर्फ से ढका यह ग्लेशियर यानी हिमनद सामरिक रूप से दोनों देशों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन इस पर सेनाएं तैनात रखना दोनों देशों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है.


सियाचिन की समस्या करीब 41 साल पुरानी है. वर्ष 1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जब शिमला समझौता हुआ तो सियाचिन के एनजे-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय हो गयी.


इस बिंदु के आगे के हिस्से के बारे में कुछ नहीं कहा गया. अगले कुछ वर्षों में बाकी के हिस्से में गतिविधियां होने लगीं. पाकिस्तान ने कुछ पर्वतारोही दलों को वहां जाने की अनुमति भी दे दी. कहा जाता है कि पाकिस्तान के कुछ मानचित्रों में यह भाग उनके हिस्से में दिखाया गया. इससे चिंतित होकर भारत ने 1985 में ऑपरेशन मेघदूतके जरिये एनजे-9842 के उत्तरी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. भारत ने एनजे-9842 के जिस हिस्से पर नियंत्रण किया, उसे सालटोरो कहते हैं.


यह वाटरशेड है, यानी इससे आगे लड़ाई नहीं होगी. सियाचिन का उत्तरी हिस्सा कराकोरम भारत के पास है, जबकि पश्चिम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास है. सियाचिन का कुछ भाग चीन के कब्जे में भी है.


एनजे-9842 ही लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा है. ये उजड़े और वीरान इलाके सामरिक दृष्टिकोण से बेहद अहम हैं. यहां से लेह, लद्दाख और चीन के कुछ हिस्सों पर नजर रखने में भारत को मदद मिलती हैविशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर समझौता आसान है क्योंकि यहां पर सैनिक गतिविधियां बंद करना दोनों ही देशों के हित में है.


दोनों देशों में आपसी भरोसे की कमी है और दोनों को हमेशा यह डर लगा रहता है कि यदि कोई चौकी छोड़ी तो दूसरा उस पर कब्जा कर लेगा. इसलिए आपसी विश्वास बढ़ाना जरुरी है. राजनीतिक विेषकों का मानना है कि दोनों देश सियाचिन में सैनिक गतिविधियों पर हो रहे भारी खर्च को बचाना तो चाहते हैं, लेकिन साथ ही चाहते हैं कि उनकी प्रतिष्ठा को भी कोई ठेस लगे यानी घरेलू मोरचे पर उनकी नाक भी बची रहे.


मैकमोहन रेखा

मैकमोहन रेखा भारत और तिब्बत के बीच की सीमारेखा है. वर्ष 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत यह रेखा अस्तित्व में आयी थी.
अगले कई वर्षो तक इस सीमारेखा का अस्तित्व अन्य विवादों के चलते छुप गया था, लेकिन 1935 में ओल्फ केरो नामक एक ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंगरेज सरकार से इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का आग्रह किया. 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमोहन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में दिखाया गया था.


इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमोहन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के विदेश सचिव थे.
हिमालय से होती हुई यह सीमारेखा पश्चिम में भूटान से 890 किमी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 किमी तक फैली है. भारत इसे चीन के साथ अपनी सीमा मानता है, लेकिन चीन 1914 के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है. चीन का मानना है कि तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसे समझौते करने का अधिकार नहीं था.


चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमोहन रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है. इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी सेना ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था. इसी वजह से इस सीमारेखा पर विवाद कायम है.


  वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को भारत और चीन के बीच सीमारेखा के तौर पर जाना जाता है. तकरीबन चार हजार किलोमीटर लंबी यह सीमारेखा कश्मीर के लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक है


24 अक्तूबर, 1959 को चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एनलाइ ने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखे गये पत्र में पहली बार इसका जिक्र किया था. उसके बाद, 7 नवंबर, 1959 को चाऊ एनलाइ ने एक बार फिर नेहरू से कहा था कि तथाकथित मैकमोहन रेखा को एलएसीके तौर पर समझा जाये. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेहरू ने इस रेखा के अस्तित्व के बारे में अनभिज्ञता जतायी थी. चाऊ एनलाइ ने कहा था कि एलएसी मूल रूप से 7 नवंबर, 1959 की स्थितियों के मुताबिक, भारत और चीन के बीच की सीमा कायम रहेगी.


वर्ष 1993 और 1996 में हुई भारत-चीन संधियों में एलएसीशब्दावली और उसके अस्तित्व को वैधानिक मान्यता दी गयी. 1996 की संधि में इस बात का जिक्र है कि एलएसीके नजदीक कोई भी देश किसी प्रकार की गतिविधियों को अंजाम नहीं देगा. हालांकि, भारत सरकार का दावा है कि चीन की सेना प्रत्येक वर्ष सैकड़ों बार एलएसीके भीतर दाखिल होती है.


इस विवाद से जुड़ा एक और इलाका है, जिस पर दोनों देश अपना दावा करते हैं. यह इलाका अक्साई चिन के नाम से जाना जाता है. यहां एक वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) है, जो कश्मीर के कुछ क्षेत्रों को अक्साई चिन इलाके से अलग करती है. भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन, सीमा विवाद के दो बड़े मसले हैं, जिसे लेकर भारत-चीन सीमाओं पर तकरार की घटनाएं होती रहती हैं.


दरअसल, अक्साई क्षेत्र में 1950 में भारत ने अपनी सीमा निर्धारित की थी, जो चीन को नागवार गुजरा था और एक लंबे अरसे से चीन ने उस पर कब्जा जमा रखा है. भारत भी उसी समय से अक्साई चिन पर अपना दावा करता रहा है और इसे जम्मू-कश्मीर का उत्तर-पूर्वी हिस्सा मानता है.


अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रफल के तकरीबन पांचवें हिस्से के बराबर है. दोनों देशों के अपने-अपने दावों को लेकर सैन्य गतिविधियां जारी रहीं. इसके लिए हमने 1962 की लड़ाई भी लड़ी.


दूसरी ओर, अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े इलाके को भी चीन अपना मानता है और उसे हथियाने की कोशिशों में लगा रहता है. अक्साई चिन की तरह वह इस पर भी कब्जा जमाना चाहता है, इसलिए ऐसी हरकतें करता रहता है. जाहिर है कि जब तक देशों की सीमाएं निर्धारित नहीं की जायेंगी, सीमा विवादों का निपटारा कर पाना आसान नहीं होगा.


चीन पहले से ही भारत द्वारा दौलत बेग ओल्डी, फुक्चे और न्योमा में कराये जा रहे निर्माण कार्यो से खार खाये हुए था. एलएसी पर पिछले चार-पांच वर्षो से भारत द्वारा बुनियादी ढांचा विकसित करने को लेकर भी चीन असहज था. भारत इन इलाकों में सड़क, बंकर, हेलीपैड वगैरह का निर्माण कर रहा था.


इन निर्माण कार्यो से पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना का मूवमेंट आसान हो गया, जिसे चीन बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. चीन ने कई बार चुमार पोस्ट पर लगे निगरानी कैमरों के तार को काटने की कोशिश की. चीन चुमार पोस्ट पर आपत्ति जताते हुए इसे खत्म करना चाहता था. भारत ने कहा कि यह महज गश्ती दल के लिए रोज की बर्फीली हवाओं से बचाव के लिए है.


अक्साई चिन
पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर में अक्साई चिन शामिल नहीं है. यह भौगोलिक क्षेत्र महाराज हरि सिंह के समय में कश्मीर का हिस्सा था. वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद से कश्मीर के पूर्वोत्तर में चीन से सटे इलाके अक्साई चिन पर चीन का कब्जा बरकरार है. पाकिस्तान ने चीन के इस कब्जे को मान्यता दे रखी है. जबकि भारत इसे जम्मू-कश्मीर का उत्तर-पूर्वी हिस्सा मानता है.
 
 
जम्मू-कश्मीर और अक्साई चिन को विभाजित करनेवाली रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है.
 
                                                         साभार प्रभात खबर