शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

आंतरिक सुरक्षा मीड़िया के लिए बिकाऊ नहीं

आज का युग मीड़िया क्रांति का युग है। आज मीड़िया की प्रभावकता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि मीड़िया किसी घटना विषय या व्यक्ति को अत्यल्प समय में अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां बना सकता है और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां रुपी अर्श से फर्श पर भी पटक सकता है। परन्तु ताज्जुब की बात यह है कि आंतरिक सुरक्षा जैसे गंभीर संवेदनशील राष्ट्रीय विषय पर मीड़िया अपनी सकारात्मक भूमिका की जगह ऊहापोह की स्थिति में नजर आ रहा है।

विज्ञान सम्मत है भारतीय संस्कृति

यजुर्वेद के अनुसार सुखपूर्वक जीवन जीने के लिए विज्ञान के आविष्कार आवश्यक हैं।




पश्चिम की संस्कृति से पूर्व की संस्कृति अर्थात भारत एवं भारतीय संस्कृति किन कारणों से महान है यह प्रश्न देश के युवाओं के मन में बार-बार उठता है। हमारे यहाँ के कुछ प्रौढ़ लोग ज्ञान-विज्ञान सहित विकास की परंपरा को नकारते हुए धर्म, अध्यात्म, जप, तप, व्रत एवं पूजा-पाठ आदि को ही भारतीय संस्कृति मानते हैं। वर्तमान परिवेश में जब कोई युवा मंदिर नहीं जाता या तिलक नहीं लगाता, तो घर के बुजुर्ग भरे लहजे में कोसते हुए एक ही राग अलापते हैं, क्या करें जमाना बदल गया है। आजकल के युवा संस्कृति, संस्कार एवं परंपराओं को भूलकर बस पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं।

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

नक्सलवाद : सरकार में दृढ़ संकल्प का अभाव

नक्सलियों से निपटने की रणनीति अस्पष्ट

नक्सल उन्मूलक आपरेशन ग्रीन हंट सुरक्षा बलों के मरने का आपरेशन बनता जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के एक नक्सल प्रभावित जिले में 75 सीआरपीएफ जवानों का नरसंहार इसका ज्वलंत उदाहरण है। यह नक्सलियों का अब तक का सबसे बड़ा नरसंहारक हमला है। अतिवादी सशस्त्र हिंसक नक्सली आन्दोलन सन् 1967 में पं. बंगाल के दार्जिलिंग जिला स्थित नक्सलबाड़ी गाँव से पनपा था। आज यह भारत के 626 जिलों में से 20 राज्यों के 232 जिलों के तकरीबन 2000 थाना क्षेत्रों तक फैल चुका है, जो कि देश का लगभग 40 प्रतिशत है।

भविष्य का मीडिया और सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकार


आज का युग मीडिया क्रान्ति का युग है। समाचार पत्रों की प्रसार संख्या तो अनवरत बढ़ती ही जा रही है साथ ही 24 घन्टे के समाचार चैनलों ने मिनटों में किसी भी समाचार को दर्शकों तक पहुँचाने की महत्वपूर्ण व अद्वितीय क्षमता से लोकतंत्र के चौथे खम्भे के रूप में अपनी सार्थकता को मजबूती प्रदान कर रहा है। भारत विश्व के 5 बड़े मीडिया बाजारों में से एक है। पश्चिम में समाचार पत्रों के समाप्त होने की लगातार सम्भावानाएं जतायी जा रही हैं लेकिन भारत में आने वाले कुछ दशकों तक समाचार पत्रों का भविष्य नि:संदेह उज्जवल है।

सोमवार, 3 मई 2010

ठंडे बस्ते में समान नागरिक संहिता


संसद के सन् 2002 के एक सत्र में गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के प्रस्ताव पर लम्बे समय बाद लोकसभा में समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर जोरदार बहस की स्थिति अधिक समय बाद उत्पन्न हुई, किन्तु इस विषय पर जिस गंभीरता के साथ चर्चा होने की अपेक्षा थी वैसी चर्चा नहीं हुई। यद्यपि कुछ अपवादों के अतिरिक्त देश के विशेष और आम आदमी सभी यह सोचते और मानते हैं कि राष्ट्रीय एकता-अखण्डता के लिए देश में एक संविधान और एक समान कानून का सिद्धांत चलना चाहिए। एक आम धारणा यह भी है कि गांधी, नेहरु और अम्बेडकर के नाम पर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने वाले लोग और दल उनके बनाए संविधान को पूर्णतः लागू करने के मुद्दे पर अभी भी तैयार नहीं है, आगे भी जल्दी तैयार नहीं होगें। इस बहस में भी इस अतिमहत्व के मुद्दे को महज मज़हबी अल्पसंख्यकवादी राजनीतिक नजरिये से देखा गया।

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

जन-गण-मन में लोकतंत्र कहाँ है?


भारत में लोकतंत्र कहाँ है ? कहीं नहीं लेकिन अराजकता हर कहीं हैं। संसद में, विधानसभाओं में, विधानसभाओं में होने वाली मारपीट में, केन्द्र सरकार में, राज्य सरकार में, मंत्रियों में, नेताओं में, राजनीतिक दलों में, सांसदों में, सांसदों द्वारा संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसा लेने में, विधायकों में, चुनावों में, चुनावी प्रत्याशियों में, केन्द्रीय विभागों व कर्मचारियों में, राज्य सरकार के विभागों व कर्मचारियों में, पुलिस में, सेना में, गरीबों के शोषण में, विदर्भ के कपास किसानों की आत्महत्याओं में।