रविवार, 1 अप्रैल 2012

दुर्गा के युवराज यूपी से भी ‘बेघर’


लोहिया ने कभी इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ कहा था। कवि हृदय पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने 1971 युद्ध-विजय से हर्षित संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा का अवतार’ कहा। लेकिन उसी दुर्गा के ‘राहु की वक्र-दृष्टि से प्रताड़ित युवराज राहुल गांधी’ को यूपी ने भी ‘बेघर’ कर दिया। इससे पहले बिहार, इस युवराज को ‘ससम्मान इकाई अंक’ देकर ‘बेघर’ कर चुका है।



राहुल ने गत बिहार विधानसभा 2010 में भगवा आतंक, मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे छल से मुस्लिमों को छलने की कोशिश की। आरएसएस प्रचारक इन्द्रेश कुमार चालित ‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ से मुसलमानों में राष्ट्रीय भाव भरने में तथाकथित सफलता से चिढ़ी कांग्रेस ने, बिहार चुनावों में लाभ के सारे तिकड़मी प्रयास किए। नतीजा यह निकला कि ‘जिन 48 सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक थे, उनमें से 42 सीटें राजग गठबंधन जीत गया।’ राहुल के सारे प्रयास उनके ‘गाल के डिंपल’ की तरह गड्ढा साबित हुए।



राहुल गांधी ने बिहार असेंबली 2010 के चुनावों में मिली करारी हार से बिना कोई सबक सीखे फिर अपने भगवान, वोटरों को ‘राजनीतिक-बौद्धिक दरिद्र’ समझकर ट्रीट किया। कांग्रेस पिछले चुनाव में 10 की जगह, आखिरी चुनावों में 4 पर सिमट गयी थी। बिहार में बतौर स्टार कांग्रेस प्रचारक राहुल गांधी ने 6 चरणों में करीब 16 सभाएं व रैलियां कीं। लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के संसदीय क्षेत्र सासाराम में राहुल ने चुनावी सभा की थी, वहां कांग्रेस छठें स्थान पर पहुंच गई। राहुल ने वहां अपने पाले में ही 6 गोल दाग दिए। इसके अलावा अन्य चुनिंदा सीटों पर राहुल के जाने से पड़े असर हैं-
बेगूसराय, कुचायकोट और मुंगेर में कांग्रेस चौथे स्थान पर रही। मांझी, कटिहार में कांग्रेस पांचवें स्थान पर चली गई थी। अररिया और सुपौल में कांग्रेस उम्मीदवारों को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। यूपी असेंबली में राहुल ने 221 रैलियां कर 28 सीटें जीतीं। उल्लेखनीय यह है कि यह संख्या पीछली बार के 22 से 6 अधिक हैं। एसपी के युवराज अखिलेश यादव ने 200 रैलियों (गेंदों) में ही 224 सीटों (रन) का कीर्तिमान बनाया।



गरीबों-दलितों के घर रात में खाना खाकर रात ठहरकर, गांवों में पदयात्रा कर, मुस्लिमों को आरक्षण का लालीपाप देकर, बहन प्रियंका, बहनोई राबर्ट बढेरा और मासूम भांजों से चुनावी मंचों पर कैटवाक कराकर भी ‘राहुल अपने राहु के प्रकोप’ से नहीं बच सके।



कभी खुद को साबित न कर पाए तथाकथित राष्ट्रीय युवराज राहुल गांधी को, क्षेत्रीय सपाई युवराज अखिलेश यादव ने यूपी में चारों खाने चित कर दिया। अखिलेश ने अपने ‘क्रांति रथ’ को जनसमर्थन से पूर्ण बहुमत वाले ‘विजय रथ’ में तब्दील कर लिया।



2009 के लोकसभा चुनावों में सपा के खराब प्रदर्शन को सुधारने के लिए मुलायम ने अखिलेश को जिम्मेदारी दी। अखिलेश ने अपने दम पर अमर सिंह, बाहुबली डी. पी. यादव को पार्टी से बाहर किया। इस अभूतपूर्व विजय के बाद ‘निराधार वोटों के दिग्गज राजनेता’ अमर सिंह के राजनैतिक करियर पर ग्रहण लगने के आसार बढ़ गए हैं।



‘यूथ आइकन’, राहुल गांधी, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में बुजुर्ग अन्ना हजारे को मिले अभूतपूर्व युवा जन समर्थन के सामने, युवाओं में अपने क्रेज को ढ़ूढ़कर कुछ नहीं पाए। राहुल को दिमाग में यह बात गांठ बांध कर रख लेनी चाहिए कि, राजनीति में कडप्पा के नायक ‘वाईएसआर’ जैसै करिश्माई व्यक्तित्व को जनता पसंद करती है। उसे युवराज या डिंपल युवराज नहीं, महानायक चाहिए, जो जनसमर्थन को झंकृत कर सके। डिंपल देखने को बॉलिवुड में एक से एक शानदार ऑप्शंस हैं, युवा राजनीति में डिंपल को पसंद नहीं करते।



राहुल के गाल पर डिंपल (गड्ढा) ‘प्रकृति प्रदत्त सुदर्शन व्यक्तित्व गढ़ता’ है। लेकिन ‘कब तक भीख मांगोगे यूपी वालों’, ‘उमा भारती बाहरी हैं’, ‘युवक कांग्रेस में नेता पेट से नहीं, संघर्षों से बनेंगे’ जैसे बयान और बिहार-यूपी असेंबली में हर हथकंडे अपनाने के बाद दुर्गति वाले नतीजे, राहुल के राजनीतिक ‘कृतित्व-ए-करियर’ पर भी डिंपल (गड्ढा) बनाते जा रहा है। यह उनकी दिल्ली की ताजपोशी में और विलंब करता जाएगा। वैसे राहुल गांधी ने यूपी के रण में प्रचंड विजय का वरण करने वाले युवराज अखिलेश को बधाई देकर और कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर अपना कद थोड़ा तो बढ़ा ही लिया।