बुधवार, 21 अगस्त 2013

भारतीय लोकतंत्र : लोक को निगलता तंत्र Indian Democracy : System Engulf the Demos


अपने कर्तव्य का तन्मयता से पालन करने के कारण आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल को उप्र के राजनीतिक तंत्र ने निलंबन का दंड दिया है। ऐसा लगता है कि अब अखिल भारतीय सेवा अधिनियमावली में संशोधन करके मुख्यमंत्रियों की हर इच्छा का पालन करना प्रथम श्रेणी अधिकारियों का प्रथम कर्तव्य घोषित कर दिया जाए और राष्ट्र की सेवा को अत्यंत गौण कर दिया जाए। वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र ने लोक को तो पहले ही लाचार बना लिया है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारतीय लोकतंत्र; तंत्र का, तंत्र द्वारा, तंत्र के लिए शासन हो गया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के शब्दों में लोकतंत्र की परिभाषा, लोकतंत्र जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन है।


स्वदेश भोपाल, 21 अगस्त, 2013
दुर्गा पर आरोप है कि उसने अवैध निर्माणाधीन दीवार गिरवा दी। अखिलेश सरकार ने अवैध दीवार पर कार्रवाई करने वाले अफसर को निलंबित कर दिया, लेकिन अभी तक सरकार ने दीवार को वैध भी नहीं कहा है। सरकार का कहना है कि दीवार के गिरने से सांप्रदायिक हिंसा फैल सकती थी। दीवार तो अभी भी गिरी हुई है, लेकिन सांप्रदायिक हिंसा नहीं फैली। दुर्गा पद पर रहती तो हिंसा होती, तो दुर्गा का तबादला कर देना चाहिए, लेकिन निलंबन की कार्रवाई तो अवैध है।



लोकतंत्र को भ्रष्टाचार रूपी दुष्चक्र ने वर्तमान समय में ऐसे जकड़ रखा है, जैसे की कोई असाध्य रोग किसी इंसान को जकड़ लेता है। भ्रष्टाचार वर्तमान में न केवल असाध्य रोग हो गया है बल्कि यह सर्वाधिक संक्रामक रोग बन गया है। भ्रष्टाचार एक ऐसा आकर्षक वायरस है, जिसे अधिकतर व्यक्ति खुशी-खुशी पाने के लिए मर-मिटने (नेता-नौकरशाह बनने) तक को तत्पर रहते हैं। इस भ्रष्टतंत्र ने भ्रष्टाचार के मामलों को बंद कर-कर के क्लोजर ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन कहलाने वाली सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन बना दिया।



अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने लिखा है कि, राजनीति या दंडनीति अप्राप्त को प्राप्त कराती है, प्राप्त की रक्षक है, रक्षित की वृद्धि करती है, वहीं संवर्धित संपदा को उचित कार्यों में लगाती है। महात्मा गांधी के चरित्र-पुत्रपं. नेहरू के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के 80 हजार मामले गृह मंत्रालय में दर्ज हुए। नेहरू के वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी मूदड़ा कांड में नप गए, लेकिन मामला शांत होते ही फिर मंत्री पद पर आसीन हो गए। लोकलेखा समिति की प्रतिकूल प्रविष्टि को लात मारकर नेहरू ने जीप घोटाले के आरोपी कृष्णामेनन को रक्षामंत्री बनाया। उद्योगपति धर्म तेजा को अपने प्रभाव का प्रयोग करके 20 करोड़ का ऋण प. नेहरू ने दिलाया, क्यों न दिलाते? सातवें दशक के प्रारम्भ में संसद के अपने पहले भाषण में प्रखर समाजवादी डॉं. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि यह हमेशा याद रखा जाय कि 27 करोड़ आदमी 3 आने रोज के खर्च पर जिंदगी गुजर-बशर कर रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री नेहरु के कुत्ते पर 3 रुसिंह पए रोज खर्च करना पड़ता है। नेहरू के राजनीतिक चरित्र को विकसित करते हुए प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और डा. मनमोहन ने संसद में नोट के बदले विश्वासमत खरीदने का अनोखा कांग्रेसी सिद्धांत चलाया, पता नहीं इससे बापू की आत्मा ने रुदन किया होगा या नहीं? याद रखिए सिद्धांतों के बिना राजनीति करना बापू के 7 महापापों में से पहला पाप है, और सबसे पहले यह महापाप करने वाले बापू के प्रथम चरित्र-पुत्र पं. नेहरू ही हैं।



इस तरह के माहौल में भी गिनती के ईमानदार अफसरों को तंत्र खून के आंसू रुलाता है। खनन माफियाओं को रोकने वाली और ग्रेटर नोएडा में अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनाई जा रही दीवार को तोड़ने का आदेश देने वाली आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल जैसी दुर्गाओं के लिए भारत का राजनीतिक तंत्र कब का आदमखोर महिषासुर बन चुका है। हरियाणा के आईएएस अशोक खेमका का ईमानदारी से काम करने के कारण 22 साल में अब तक 44 बार तबादला हो चुका है। ईमानदार माने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के आईपीएस मनोज नाथ का एक साल में 4 बार स्थानांतरण किया। यूपी के आईपीएस अमिताभ ठाकुर का 18 साल में 22 बार तबादला हुआ है।



एमपी के आईपीएस नरेंद्र कुमार को मुरैना जिले में खनिज माफिया ने कुचलकर मार डाला। कर्नाटक के कोऑपरेटिव विभाग के डिप्टी डायरेक्टर के पद पर रहे महंतेश ने गैरकानूनी भूमि आवंटन का भंडाफोड़ किया तो इन्हें कार से खींचकर लोहे की राड से मार डाला गया। महाराष्ट्र के मालेगांव के तेल माफिया पोपट शिंदे ने अडिशनल कलेक्टर यशवंत सोनावणे को तेल डालकर जिंदा जलाकर मार दिया। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की बन रही सड़क में धांधली को उजागर करने के कारण आईआईटी कानपुर के इंजिनियर सत्येंद्र दूबे की गया में गोली मारकर हत्या कर दी गई। आईआईएम लखनऊ के स्नातक और इंडियन आयल के सेल्स मैनेजर एस. मंजूनाथ की तेल में मिलावट करने से रोकने के कारण हत्या कर दी गई। इन मामलों में परोक्ष रूप से भ्रष्टतंत्र ने सरकार की हत्या ही की है क्योंकि सरकार के प्रथम श्रेणी का प्रतिनिधित्व, प्रथम श्रेणी अधिकारी सबसे पहले और सबसे प्रमुखता से अपनी दैनंदिन कार्रवाइयों के माध्यम से करता है।



डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि, धर्म और राजनीति एक ही सिक्के दो पहलू हैं, धर्म दीर्घकालिक राजनीति है और राजनीति अल्पकालिक धर्म। समाजवादी मुलायम सिंह तो लोहिया के विचारों की हत्या करके परिवारवाद चला रहे हैं। अखिलेश का अल्पकालिक धर्म दुर्गाओं को सस्पेंड करना है, तो दीर्घकालिक धर्म की आसानी से कल्पना उपर के अवतरण पढ़ कर की जा सकती है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा यह निश्चित रूप से बहुमत से तय होना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री क्या करेगा यह केवल धर्म से तय होना चाहिए, बहुमत या वोटबैंक से नहीं। कौटिल्य ने अर्थशास्त्रमें युवराजों को केकड़ा कहा है, कांग्रेस और सपा के युवराज कैसे हैं, आप स्वयं तय करिए।



दुर्गा के निलंबन पर जनता की प्रतिक्रिया सीमित और अपर्याप्त है। न्यायवादी सालमंड ने ठीक ही कहा था कि, वह समाज जो अत्याचार होने पर भी उद्वेलित नहीं होता, उसे कानून की प्रभावी पद्धति कभी नहीं मिल सकती। दरअसल भारतीय लोकतंत्र में अमीर किसी भी प्रकार के शासन तंत्र में धमक के साथ रह सकता है। गरीब प्रतिदिन दो जून की रोटी कमाने में ही अपना जीवन गुजार देते हैं। मध्य वर्ग के लोगों पर जब जुल्म होता है, तो रोते हैं, लेकिन मौका मिलते रहने पर भ्रष्टाचार की नदी में हाथ भी धोते रहते हैं। जनता में इतनी जागरूकता होनी चाहिए कि मुख्यमंत्री के एक गलत कदम पर जनता सड़कों पर उतरकर प्रशासनिक व्यवस्था पर बाध्यकारी दबाव बना दे। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक देश में कानून का राज, केवल 5 साल में एक बार वोट देने मात्र से तो कभी स्थापित हो ही नहीं पाएगा।



अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के बारे में कहा था, बैलेट बुलेट से ज्यादा ताकतवर होता है। भारत में तो ऐसा लगता है कि हत्याकर्ता के आका यह सोचकर हत्याएं कराते हैं कि न्याय में सिर्फ सजा होगी, कोई भी न्यायालय मृतात्मा को जिंदा नहीं कर सकती। मृतात्मा को जिंदा किए बिना सारे न्याय बेमानी हैं, और हत्याकर्ता के पक्ष में हैं। क्योंकि दूसरा अधिकारी अपने ठीक पहले अधिकारी की हत्या होने के कारण मजबूत मनोबल से भ्रष्टों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की कभी जुर्रत ही नहीं करेगा।



लुटेरे लोकतंत्र के दूसरे स्तंभ अमेरिका की एफबीआई तो बिना किसी की अनुमति लिए गवर्नर तक के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने में सक्षम है। कितनी स्तब्ध करने वाली बात है कि घोटाले या भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होने के बाद भी संबंधित व्यक्ति की काली सम्पत्ति को जब्त करने का कोई कानून, कोई भी राजनीतिक दल नहीं बनने देना चाहता।


 
वास्तव में बहुत से तंत्रों ने मिलकर लोकतंत्र के चारो ओर एक दुष्चक्र बना लिया है, जिससे निकलने के लोकतंत्र के सारे प्रयत्न व्यर्थ होते जा रहे हैं। भारत में लोकतंत्र कहीं है ही नहीं, है तो एक सुविधाशुल्कतंत्र, घोटालातंत्र या घूसतंत्रजो की अब सिस्टम का सभी लोगों द्वारा अंगीकृत किया जाने वाला सामान्यत: सबसे शिष्टतंत्रबन गया है, जिसके माध्यम से केन्द्र से चले 100 पैसे गाँव के अन्त्योदय तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे ही रह जाते हैं।



समस्या की असली जड़ राजनैतिक भ्रष्टाचार या काला धन नहीं है बल्कि कोयले से भी अधिक काला हमारा समाज और इस समाज के दो-तिहाई से भी कहीं अधिकतम घर हैं। आज के दौर में सफलता पाने के लिए और कुछ हो या न हो, ये 4 चीजें नहीं होनी चाहिए - गैरत, शर्म, जमीर और पीठ में रीढ़ की हड्डी। क्या यह कड़वी सच्चाई नहीं है कि आज के समाज में यदि आप भ्रष्टशिष्ट नहीं है, तो सब कुछ हो सकते हैं लेकिन शिष्ट नहीं? भ्रष्टाचार शिष्टाचार के सर्वोच्च मापदण्ड के रुप में कब का स्थापित हो चुका है। ईमानदार होना अत्यंत असमान्य बात है, बेईमान होना न केवल सामान्य बात है बल्कि जीवन जीने के लिए पहली व सबसे बड़ी अपरिहार्य शर्त है। क्या सत्ता से समाज में बदलाव संभव है? या फिर समाज कई बार सत्ता को बदल चुका है? क्या भारतीय समाज में बेईमानी बहुमत में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है? जहां ईमानदारी शायद ही कभी अल्पमत से बहुमत में आ पाए। भारत में बेईमानी के बहुमत से बनी बेईमान सरकार अब खुलकर बेईमानी कर रही है, तो हाय-तौबा क्यों? केवल हाय-तौबा मचाने वाले लोग ही ईमानदार नजर आ रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या नगण्य जैसी है। भारतीय लोकतंत्र में भी ईमानदारी नगण्य जैसी ही है।