शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई राइट टू रिजेक्ट पर मुहर Supreme Court gives voters the right to reject


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अहम फैसले में मतदाता को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार देने पर अपनी मुहर लगा दी। इस फैसले के तहत अगर चुनाव में मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो उसे वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नन ऑफ द एबव यानी उपरोक्त में कोई नहीं के विकल्प पर मुहर लगा सकता है।

-मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल लोकहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि एक व्यक्ति को संविधान वोट डालने का अधिकार और उसको खारिज करने का अधिकार भी उसकी अभिव्यक्ति को दर्शाता है।


-यह याचिका पिछले  सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी और गत 29 अगस्त को कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उम्मीदवार को नकारने के हक पर आए इस फैसले के बेहद दूरगामी परिणाम होंगे।

-याचिका में मांग की गई है कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए जिसमें कि मतदाता के पास उपरोक्त में कोई नहीं पर मुहर लगाने का अधिकार हो। अगर मतदाता को चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में कोई भी पसंद नहीं आता तो उसके पास उन्हें नकारने और उपरोक्त में कोई नहीं चुनने का अधिकार होना चाहिए।

-चुनाव आयोग ने याचिका का समर्थन किया था जबकि सरकार ने विरोध किया था। अभी मौजूदा व्यवस्था में ऐसी कोई बटन ईवीएम में नहीं है।

-अगर मतदाता को कोई भी उम्मीवार पसंद नहीं आता है तो उसे यह बात निर्वाचन अधिकारी के पास रखे रजिस्टर में दर्ज करानी पड़ती है।

-याचिकाकर्ता का कहना था कि रजिस्टर में दर्ज करने से बात गोपनीय नहीं रहती। मतदान को गोपनीय रखने का नियम है।

-ईवीएम में बटन उपलब्ध कराने से मतदाता द्वारा अभिव्यक्त की गई राय गोपनीय रहेगी।

-दो साल पहले अन्ना ने अनशन के दौरान भी यह मांग तेजी से रखी थी। उनका कहना था कि राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट जैसे अधिकारों से जनप्रतिनिधियों को सीधे तौर पर नियंत्रित किया जा सकता है।

- केंद्र सरकार भी इस प्रावधान के पक्ष में दिखती है।

-ईवीएम में इनमें से कोई नहीं का विकल्प होने के बाद वोटर आसानी से अपने क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सकेंगे। अभी इसके लिए काफी लंबी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। दरअसल, वोटरों के पास रूल नंबर 49-ओ के तहत नेगेटिव वोटिंग का अधिकार पहले से ही है। इसके तहत वोटर को फॉर्म भरकर पोलिंग बूथ पर चुनाव अधिकारी और एजेंट्स को अपनी पहचान दिखाकर वोट डालना होता है। इस प्रक्रिया की खामी यह है कि पेचीदा होने के साथ-साथ इसमें वोटर की पहचान गुप्त नहीं रह जाती। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब आगामी महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी होने हैं।
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राइट टू रिजेक्ट पर किसने क्या कहा?
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लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके तहत चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं।
निर्वाचन आयुक्त एच.एस. ब्रह्मा
ने हाल ही में कहा था चुनाव आयोग राइट टू रिजेक्ट पहल का स्वागत करता है लेकिन राइट टू रिकॉल का नहीं, क्योंकि यह राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के साथ ही विकास की गतिविधियों को प्रभावित करेगा।
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अन्‍ना हजारे
हमारा संघर्ष सिर्फ जनलोकपाल तक नहीं है, हम 'राइट टू रिजेक्‍ट' और 'राइट टू रिकॉल' के लिए भी जंग लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे।
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गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी
मतदाताओं को नकारात्मक मतदान के अधिकार देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए अनिवार्य मतदान की वकालत की। मोदी ने अपने ब्लाग में लिखा कि मैं तहे दिल से इसका स्वागत करता हूं। मुझे विश्वास है कि इसका हमारी राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और यह चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम होगा जो हमारे लोकतंत्र को और अधिक विविधतापूर्ण और सहभागितापूर्ण बनायेगा। गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीनदवार नरेंद्र मोदी भी राइट टू रिजेक्ट का समर्थन कर चुके हैं। 29 जून, 2013 को गांधीनगर में यंग इंडिया कॉनक्लेव में उन्होंने कहा था कि मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार मिलने से गंदी हो चुकी राजनीति में कुछ सुधार संभव है।
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कानून मंत्री के तौर पर कुछ साल पहले सलमान खुर्शीद 
चुनाव सुधार के लिहाज से राइट टू रिजेक्ट दिए जाने को सही कदम बताया था।
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लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी
मैं  सुप्रीम कोर्ट के  इस फैसले का विरोध  का विरोध करता हूं, मैं नहीं समझता कि यह सही है।
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कांग्रेस महासचिव अजय माकन
इस फैसले का अध्ययन किए जाने की जरूरत है। इस बारे में तत्काल प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगी।
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कांग्रेस नेता राशिद अल्वी
मैं महसूस करता हूं कि इस फैसले पर अमल करना कठिन होगा और यह कई समस्याएं पैदा करेगा।
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माकपा नेता सीताराम येचुरी
यह असमान्य स्थिति है जिसे दुरूस्त किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, हमारे संसदीय लोकतंत्र में चुनाव की प्रत्यक्ष भूमिका होती है। चुनाव में न तो चुनाव आयोग और न ही न्यायपालिका हिस्सा लेती है। इसमें राजनीतिक दल हिस्सा लेते हैं। इनसे बिना बात किए इस तरह का निर्णय लेना अच्छा संकेत नहीं है।
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संदीप दीक्षित, कांग्रेस सांसद
जनता अपनी राय प्रकट करना चाहती है। डेमोक्रेसी में सभी को अपनी राय रखने का अधिकार है। रिजेक्ट करने से बेहतर होता उम्मीदवार पार्टी ठीक होने पर एकराय बनती। इस पर ज्यादा कमेंट नहीं करना चाहता। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
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संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप
इसे लागू करने में कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है, क्योंकि यह व्यवस्था पहले से ही है यदि कोई मतदाता किसी उम्मीदवार को वोट न करना चाहे तो चुनाव के दौरान वह मतदान केंद्र पर अलग से एक फॉर्म लेकर अपना विरोध दर्ज करा सकता है।
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बलबीर पुंज, बीजेपी नेता
मतदाता के पास जितने विकल्प थे उसमें एक अतिरिक्त विकल्प अब उन्हें मिल गया है। जो लोग लोकतंत्र को मानते हैं वो इसका स्वागत करेंगे, क्योंकि लोकतंत्र में जितने भी अधिकार मतदाता को मिलें वो अच्छा है। कोर्ट का जो निर्णय है उस पर चुनाव आयोग को नियमों में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए। मैं इसे कोई लैंडमार्क नहीं मानता हूं।
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मुख्तार अब्बास नकवी, बीजेपी नेता
अभी इस फैसले को देखा नहीं है। लेकिन राइट टू रिकॉल या राइट टू रिजेक्ट मामला बहुत पेचीदा सवाल है। सरकार द्वारा गठित समितियों ने अपने सुझाव दिए हैं, हमने भी सुझाव दिए हैं। लेकिन ये जरूरी है कि चुनाव सुधार के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। हम चुनाव सुधार के पक्ष में हैं।
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केसी त्यागी, जेडीयू सांसद
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भी ये मांग उठी थी। कोर्ट के फैसले का स्वागत है लेकिन व्यवहारिक नहीं है। देश की जनता इतनी पढ़ी लिखी नहीं है कि राइट टू वोट का इस्तेमाल करेगी।
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अरविंद केजरीवाल, आप नेता
हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। सरकार इस पर ऑर्डिनेंस ले आए कि 'इनमें से कोई नहीं  को मेजोरिटी मिलती है तो चुनाव कैंसल हो जाएगा तो पूरा देश इनका स्वागत करेगा। क्या सरकार ऐसा करेगी।
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प्रशांत भूषण, वकील
ये राय व्यक्त करने का जनता का मौलिक अधिकार है और ये मिलना चाहिए। आज ऐसा माहैल हो चुका है कि जनता को किसी के ऊपर विश्वास नहीं है। दागी लोगों को संसद में नही होना चाहिए।
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संजय पारेख, वकील सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजनीतिक पार्टियों के लिए स्‍पष्‍ट संदेश है। देश की जनता गुड गवर्नेंस चाहती है और 'राइट टू रिजेक्‍ट' से राजनीतिक दल उम्‍मीदवार चुनने से पहले सोचेंगे। 
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अनुपम खेर
यह समय अन्‍ना हजारे को याद करने का है, जिन्‍होंने राइट टू रिजेक्‍ट की मांग उठाई की थी, जय हो....  
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सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के प्रमुख बिन्दु

-प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सदाशिवम की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान (निगेटिव वोटिंग) से चुनावों में शुचिता और जीवंतता को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापक भागीदारी भी सुनिश्चित होगी क्योंकि चुनाव मैदान में मौजूद प्रत्याशियों से संतुष्ट नहीं होने पर मतदाता प्रत्याशियों को खारिज कर अपनी राय जाहिर करेंगे।
  
-पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा से निर्वाचन प्रकिया में सर्वांगीण बदलाव होगा, क्योंकि राजनीतिक दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।

-पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा 13 देशों में प्रचलित है और भारत में भी सांसदों को संसद भवन में मतदान के दौरान अलग रहने के लिए बटन दबाने का विकल्प मिलता है।
   
-व्यवस्था देते हुए पीठ ने कहा कि चुनावों में प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
   
-पीठ के अनुसार, लोकतंत्र पसंद का मामला है और नकारात्मक वोट डालने के नागरिकों के अधिकार का महत्व व्यापक है। नकारात्मक मतदान की अवधारणा के साथ, चुनाव मैदान में मौजूद प्रत्याशियों से असंतुष्ट मतदाता अपनी राय जाहिर करने के लिए बड़ी संख्या में आएंगे जिसकी वजह से विवेकहीन तत्व और दिखावा करने वाले लोग चुनाव से बाहर हो जाएंगे।
   
-पीठ ने हालांकि इस बारे में कुछ साफ नहीं किया कि कोई विकल्प नहीं के तहत डाले गए वोटों की संख्या अगर प्रत्याशियों को मिले वोटों से अधिक हो तो क्या होगा। बेंच ने कहा कि कोई विकल्प नहीं कैटिगरी के तहत डाले गए वोटों की गोपनीयता निर्वाचन आयोग को बनाए रखनी चाहिए।

-चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को गोपनीय और सुविधाजनक बनाने के लिए 10 दिसंबर 2001 को ही ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम के बाद इनमें से कोई नहीं का विकल्प देने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था, लेकिन इन 12 सालों में इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने वोटरों को यह अधिकार दे दिया।
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लेकिन चुनाव सुधारों की मांग कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि किसी क्षेत्र में अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट इनमें से कोई नहीं के ऑप्शन पर पड़ता है, तो वहां दोबारा चुनाव करवाना चाहिए। अभी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह मतदाता का अधिकार है कि वह सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके। चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया था और सुझाव दिया था कि सरकार को ऐसा प्रावधान करने के लिए कानून में संशोधन करना चाहिए। हालांकि, सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
                                                                                                                                      साभार गूगल सर्च