बुधवार, 18 जनवरी 2012

खाक में मिलने को मचलता पाक


  

खाक में मिलने को मचलता पाक


पाक में मेमोगेट विवाद से दिन-ब-दिन सेना, लोकतंत्र की मुश्कें कसता जा रहा है। रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) खालिद नईम लोदी को सरकार से अनुमति लिए बिना मेमोगेट मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने पर 11 जनवरी को पीएम गिलानी ने पद से हटा दिया था। लोदी सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी के खास हैं। 19 जनवरी को गिलानी सुप्रीम कोर्ट में दोषी पाए जाने पर इस्तीफा दे सकते हैं।



सेना के लिए देश के पश्चिमी भाग में मजबूत तालिबानी आतंकी गठजोड़, खराब इकॉनमी और पहले जैसे यूएस से डॉलर की खुराक न मिलने से 1958, 1969, 1977, 1999 की तरह तख्तापलट आसान नहीं होगा।
सेना के लिए देश के पश्चिमी भाग में मजबूत तालिबानी आतंकी गठजोड़, खराब इकॉनमी और पहले जैसे यूएस से डॉलर की खुराक न मिलने से 1958, 1969, 1977, 1999 की तरह तख्तापलट आसान नहीं होगा।



विरोध, हिंसा, रक्त-पात और कारूणिक नरसंहारिक दंगों से जन्मे देश का नाम है पाकिस्तान (पवित्र भूमि), जिसके जिम्मे पूरी दुनिया में दहशतगर्दी के नापाक (अपवित्र) कारोबार करने का ठेका है।



‘कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल’ निदेशक गुलाम नबी फाइ ‘यूएस फॉरेन एजेंट्स रजिस्ट्रेशन एक्ट’ के प्रावधानों के उल्लंघन से एफबीआई के कैद में है। इस संगठन की शाखायें लंदन और ब्रुसेल्स में है। फाइ 20 वर्षों से पाक के निर्देश पर काम कर रहा था। कश्मीरी अलगाववादी नेता गुलाम नबी फाइ की 40 लाख अमेरिकी डालर के साथ गिरफ्तारी से पाक की विदेश नीति को अमेरिका में करारा झटका लगा है। फाइ को आईएसआई ने यह राशि कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिका की नीति को प्रभावित करने के लिए दी थी। अमेरिका द्वारा पाक में लादेन के मारे जाने के बाद फाइ की गिरफ्तारी से पाक अपनी अमेरिका नीति में बुरी तरह फेल हो गया है।



लगता है पाक ‘स्वतंत्र बलूचिस्तान और वतन या कफन’ को साकार कर लेने देगा। क्योंकि उसे तो केवल कश्मीर चाहिए, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पडे, चाहे देश के कुछ और टुकड़े क्यों न हो जायें। भले ही पूर्वी पाक (बंग्लादेश) जैसा माहौल बलूचिस्तान में वहां के जनजातीय नेता ‘नवाब अकबर बुग्ती’ की पाक सेना द्वारा 2006 में हत्या किए जाने से गहरा हो रहा हो। बलूच न केवल पाक का सबसे बड़ा प्रांत है, बल्कि वहां पाक का तकरीबन 80 प्रतिशत ऊर्जा व खनिज संसाधन है। बलूचियों के अपने पृथक राष्ट्रगान बनाने की भी खबरें हैं। लगता है कश्मीर की लालच में पाक अपना एक और प्रांत गंवायेगा।



पाक विश्व के असफल देश के रूप में सिरमौर है, जो “आतंक, आर्मी और अमेरिका, अराजकता” से किसी तरह से चल-फिर रहा है। पाक ही ऐसा दुर्लभ देश है जिसका 14 अगस्त, 1947 से पहले का इतिहास, भूगोल, संस्कृति-सभ्यता जो है, उसे या तो वह अपना नहीं मानता है या तो उसे जान-बूझकर नष्ट करने को आतुर रहता है। ऐसे श्रेष्ठ असफल देश की भारत के सन्दर्भ में विदेश नीति भूमंडल में इतनी सफल है कि, “वह भारत को जैसे चाहता है, लगभग वैसै नचाता प्रतीत होता है।”



पाक सेना, पाक की सबसे बड़ी औद्योगिक, बैकिंग व भूस्वामी यूनिट है। यह परमाणु शक्ति-सम्पन्न विश्व की सातवीं बड़ी सेना है। इस समय भी पाक के कई सरकारी व सार्वजनिक पदों पर सैन्य अधिकारी तैनात हैं। इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाक सेना का इतिहास, पाक में लोकतांत्रिक सरकार को कभी भी धकियाकर सत्ता पर काबिज हो जाने का है। भारतीय सेना के बारे में इसके शतांश की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आमतौर पर पाक के वार्षिक आम बजट का तकरीबन 25 प्रतिशत सेना द्वारा हड़पने के लिए भारत से खतरे को कारण बताया जाता है।



लगता है जैसे भारत ने पाक पर कभी आक्रमण किया हो या प्रतीकात्मक रूप से कभी धमकाया हो, या देख लेने की धमकी दी हो। मोटे तौर पर पाक सेना से भारतीय सेना तकरीबन दोगुनी है। पाक के रक्षा मंत्री चौधरी अहमद मुख्तार ने बीबीसी को जून (2011) के अंत में दिए साक्षात्कार में सच कहा है कि, “भारत और पाक के बीच 20-22 दिनों की लड़ाई की क्षमता है। अब जबकि, भारत ने बहुत ज्यादा हथियार शामिल कर लिए हैं तो वह 45 दिनों तक युद्ध में टिक सकता है, लेकिन हम (पाक) ऐसा नहीं कर पायेंगे।” स्पष्ट है कि भारत सिर्फ ठान ले तो पाक का नाम-ओ-निशां मिटने में किसी को संशय नहीं होगा।



हालांकि बंग्लादेश के 1971 में अलग होने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो पाक के पीएम बने। परन्तु इसी चतुर सुजान राजनेता ने सबसे पहले घास खाकर एटम बम बनाने और 1,000 हजार वर्षों तक कश्मीर के लिए भारत से युद्ध करने का वादा करके शायद पाक में अपार लोकप्रियता बटोरी। इन्हीं भुट्टो ने एक और कट्टरवादी कदम उठाते हुए रविवार की छुट्टी को बंद कर जुमे (शुक्रवार) की छुट्टी की घोषणा के साथ पाक को “इस्लामिक गणतंत्र पाकिस्तान” बना डाला। वैसे गणतंत्र तो वह न कल था, न आज है, न ही भविष्य में उसके बनने की कोई खास संभावना है।



पाक अब स्पष्ट रूप से कहने लगा है कि वह अपनी धरती का प्रयोग भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों में नहीं होने की गारंटी नहीं ले सकता। कारण कि पाक अपने देश में आतंकी हमलों को तो रोक नहीं पाता, भारत पर हमलों को कैसे रोक पायेगा। इससे एक तथ्य साबित हो जाता है कि पाक एकमात्र ऐसा सम्प्रभु देश है (हालांकि अमेरिका इसे अपनी बोटियों पर पलने वाले से ज्यादा कुछ नहीं मानता, सम्प्रभु तो कतई नहीं मानता। हालिया लादेन को मारने के लिए की गई अमेरिकी कमांडों कार्रवाई इस बात का पक्का सबूत है), जहां वास्तव में पाक सरकार व शायद सेना से भी अनियंत्रित ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ रहते हैं।



पाक की ताकत को बढ़ाते हुए, ‘दुश्मन का दुश्मन, अपना दोस्त’ की तर्ज पर, चीन ने अपनी दूरदर्शी नीति को साधते हुए पाक के ग्वादर में अपनी ऐसी मिसाइलें तैनात की हैं, जिनकी मारक जद मुंबई तक है।



यह स्थिति तब है, जब पाक में सेना और आईएसआई का प्रभुत्व है। पाक के 63 वर्षों के जीवनकाल में सेना के सबसे ताकतवर होने का आधार तकरीबन 35-40 साल तक पाक में सैन्य-शासन का रहना है। जिस दिन भारत-पाक के सामान्य संबंध कायम हो गये, उसी दिन से पाक में सेना और आईएसआई का रूतबा, वर्चस्व समाप्त हो जायेगा। क्योंकि इसके बाद भारत से पाक को कोई खतरा नहीं होगा।



26/11 के 2008 के मुम्बई हमले में आईएसआई एवं पाक आतंकी संगठनों के हाथ होने के प्रत्यक्ष प्रमाण पूरे विश्व ने देखे हैं। तभी से पाक पर कुछ दबाव बना है, जो डेविड कोलमैन हेडली के बयान से और पुख्ता हुआ है। अब तक हुए छोटे-बड़े 5 युद्धों में भारत से सीधे न जीत पाने का ‘गम व मलाल’ पाक को हमेशा सालता है।



जो देश हजारों वर्षों के सैकड़ों बर्बर हिंसक आक्रमणकारियों को झेलकर खड़ा है, उस भारत की हस्ती को, भारत से ही बने पाक द्वारा ‘हजार घाव देकर मिटाने की तमन्ना रखना हास्यास्पद ही लगता है’। वैसे इस दुर्भावना से वह अपने को भी कई घाव दे चुका है और आये दिन होने वाले आतंकी हमलों से, उसको अपनों से मिलने वाले घावों की संख्या भी बदस्तूर बढ़ रही है।



भारतीय विदेश नीति की सफलता इसी में निहित है कि वह पाक को स्पष्ट रूप से यह चेतावनी दे दे कि, “एक भी और आतंकी हमला यदि हुआ तो, पाक अपना सर्वनाश सुनिश्चित समझे”। भारत शायद ही पाक से ऐसा कह पाये। तिस पर यह देश महाशक्ति है। महाशक्ति दूसरों से अपनी रक्षा की भीख नहीं मांगती, दूसरे देशों की रक्षा करती है।



भूमंडल-ख्यात पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने एक अंक में सही कहा गया है कि, “पाक को वाशिंगटन के नीति नियामक धड़ों में लंबे समय से दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता है। अब पाकिस्तान न केवल पश्चिम के लिए बहुत खतरनाक है, बल्कि यह अपने लोगों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है।”
(लेखक युवा स्तम्भकार हैं)