बोलने वाले मनमोहन हैं शिवराज सिंह चौहान Shivraj singh chauhan is a mouthy Manmohan
कुन्दन पाण्डेय
मध्य प्रदेश के मनमोहन सिंह बन गए हैं शिवराज
सिंह चौहान। नहीं; नहीं,अपने 10 साल के कार्यकाल में मौन रहने
वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं, ये हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। ये न केवल बोलने वाले हैं, बल्कि शब्दशूर और मंचशूर भी हैं। जिस तरह मनमोहन
को नहीं पता था कि उनके मंत्री ए. राजा क्या कर रहे हैं, उसी तरह शिवराज को भी नहीं पता है कि उनके
मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा क्या कर रहे थे?
मनमोहन सिंह अपने
कैबिनेट की बैठकों में हमेशा शामिल रहने वाले मंत्री द्वारा किए जा रहे 2-जी
स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में महीनों तक नहीं जान पाए, उसी
तरह कैबिनेट की बैठकों में शामिल रहने वाले लक्ष्मीकांत शर्मा क्या कर रहे हैं?
यह शिवराज सिंह चौहान नहीं जान पाए।
शिवराज
मनमोहन सिंह की तरह ईमानदार हो सकते हैं और हो सकता है कि जांच होने पर भी शिवराज
दोषी साबित न हों, लेकिन शिवराज-2 सरकार ने व्यापमं फर्जीवाड़ा किया है। यूपीए-2
की तरह यह भाजपा पर बहुत भारी पड़ेगा। यदि शिवराज दोषी
नहीं हैं तो वे सीबीआई जांच से क्यों भाग रहे हैं। क्योंकि सीबीआई उन्हें दोषी तो
ठहरा नहीं देगी। दरअसल आडवाणी खेमे में अंत तक रहकर शिवराज ने मोदी से बैर मोल ले
लिया। इसलिए आज के हालात में शिवराज कांग्रेस सरकार की सीबीआई पर तो भरोसा कर सकते
हैं, मोदी सरकार की सीबीआई पर नहीं।
लाल बहादुर शास्त्री नेहरू सरकार में
रेल मंत्री थे, तो उनके कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना
हो गई। शास्त्री जी ने दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते
हुए अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन मुख्य बात यह है कि शास्त्रीजी
दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन के न तो ड्राइवर थे और न ही सिग्नल ऑपरेटर। और दुर्घटना
अचानक कुछ क्षण में हो गई। क्षण भर में हुई दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी मंत्री
की है तो महीनों तक चलते रहने वाले व्यापमं घोटाले की नैतिक जिम्मेवारी निश्चित
रूप से मुख्यमंत्री की है। यदि शिवराज इस्तीफा दे देंगे तो भाजपा का क्या नुकसान
हो जाएगा? व्यापमं, शिवराज-2 ट्रेन की एक पूरी
बोगी है और इस ट्रेन के ड्राइवर हैं शिवराज सिंह चौहान। शिवराज जब आप मंत्रियों पर
नियंत्रण रखने में सक्षम ही नहीं हैं तो मुख्यमंत्री कब तक बने रहेंगे?
शिवराज सिंह कोई बच्चे नहीं है, कि उन्हें यह बात समझ में नहीं आ रही है कि जब वे विदेश गए; तभी एसटीएफ ईमानदार क्यों हो गई? इस सवाल का उत्तर हर किसी को आसानी से समझ में आ सकता है, शिवराज जानबूझकर इसे नहीं समझना चाहते हैं। उनके मध्यप्रदेश में रहते ही एसटीएफ की ईमानदार गिरफ्तारी से किसको नुकसान हो सकता था? मुख्यमंत्री के करीबी और जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष डॉक्टर अजय शंकर मेहता की भी गिरफ्तारी हुई लेकिन एक भी बार पूछताछ के लिए एसटीएफ ने उन्हें रिमांड पर नहीं लिया। कांग्रेस तो यहां 100 वर्ष के अधिक की आयु के भयंकर बुढ़ापे से ग्रस्त हो गई लगती है। सरकार गिराने लायक व्यापक व्यापमं घोटाले के बावजूद अभी तक कांग्रेस निर्णायक विरोध तक नहीं कर पा रही है।
शिवराज
सिंह यह बताएं कि कैबिनेट के सामूहिक उत्तरदायित्व का मतलब क्या होता है?
यदि सामूहिक उत्तरदायित्व बनता है तो व्यापमं घाटाले के लिए पूरी शिवराज सरकार
जिम्मेदार है, न कि केवल एक पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा। जब पूरी सरकार
जिम्मेदार है तो केवल एक मंत्री को क्यों गिरफ्तार कर रही है एसटीएफ। यदि शिवराज अपने
रेग्युलर टच में रहने वाले कैबिनेट मंत्री को भ्रष्टाचार करने से नहीं रोक पाने के
दोषी नहीं हैं,
तो डायरेक्ट टच में नहीं रहने वाली जनता और अपराधियों को नहीं रोक
पाने के लिए पुलिस अधिकारी, इंस्पेक्टर और कांस्टेबल कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं?
इसी प्रकार कोई भी सचिव अपने विभाग के मातहतों को भ्रष्टाचार करने से नहीं रोक
पाने का दोषी नहीं होगा तो डीएम जिले में हुए भ्रष्टाचार के लिए कतई जिम्मेदार
नहीं होगा।
शिवराज
सिंह को यह याद रखना चाहिए कि शक्ति और सत्ता अधिक समय तक एक व्यक्ति के हाथों में
केंद्रित नहीं रहती। एक दिन उनके हाथ से भी सत्ता छिनेगी, जैसे उमा भारती और
दिग्विजय सिंह के हाथ से सत्ता छीनी है। तब उन पर लगे भ्रष्टाचार के सारे आरोपों
की फिर से जांच हो सकती है, जिसके नतीजे शिवराज के लिए अप्रिय भी हो सकते हैं।
नरेंद्र मोदी
अपने विरोधियों को अच्छी तरह निपटाते हैं। मोदी शिवराज को सीएम पद से हटाने का मन
बना चुके हैं। संघ भी मोदी को रोकेगा नहीं, क्योंकि संघ के अब तक के इतिहास में
पहली बार बड़े पदाधिकारियों के नाम किसी (व्यापमं) घोटाले में
राजनीति करते हुए उछाले गए लगते हैं। पार्टी में मोदी के दो ही बड़े विरोधी बचे
हैं, एक हैं बतौर प्रदेश प्रभारी राज्यों में हारने का रिकॉर्ड कायम करने वाले और
दूसरे शिवराज सिंह चौहान। अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनते ही शिवराज की हैसियत
सीएम जैसी नहीं रह गई है, भले ही कुछ माह और सीएम बने रहें शिवराज। नरेंद्र मोदी
और अमित शाह पार्टी में नंबर दो बनने की शिवराज की महत्वाकांक्षा से परिचित हैं
इसलिए शिवराज का जाना अब निश्चित हो गया है। परिस्थितियां देखकर मोदी भविष्य में
इसका निर्णय कभी भी कर सकते हैं।
संघ
से पैदा हुए कुछ राज-पुत्र अपने आप को दुर्योधन और संघ को भीष्म पितामह समझने लगते
हैं। संघ के कुछ राज-पुत्र तो संघ से अपने चरण पखरवाने का भी सपना देखने लगते हैं।
ऐसा ही सपना शिवराज भी देख रहे हैं। शिवराज भी दुर्योधन की तरह राज्य को अधिकार
समझते हैं, कर्तव्य नहीं। यदि कर्तव्य समझते तो कर्तव्य नहीं निभा पाने पर तुरंत
पद छोड़ दिए होते।
व्यापमं फर्जीवाड़ा मामले में मध्यप्रदेश पुलिस के
डीआईजी स्तर के दो अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। मुख्यमंत्री के निजी
सहायक प्रेम प्रसाद का भी नाम आ रहा है। राज्यपाल के पूर्व ओएसडी धनराज यादव और कांग्रेस नेता
संजीव सक्सेना आदि के नाम भी एफआईआर के पन्नों में दर्ज हैं।
लक्ष्मीकांत शर्मा
की गिरफ्तारी एक मंत्री की गिरफ्तारी नहीं है, बल्कि एक पूरी सरकार के सामूहिक
उत्तरदायित्व की गिरफ्तारी है। लोकसभा के सुविशाल
कक्ष में सभाध्यक्ष की पीठ के पीछे दीवार पर ‘ललित विस्तार’ से ली गई बौध्द
चिंतन की यह अत्यंत प्रसिध्द सूक्ति सदन में विद्यमान सभी सदस्यों को मनन करने
की प्रेरणा देती है - धर्मचक्र-प्रवर्तनाय
(ललित विस्तार, अध्याय-26)। धर्म की प्रक्रिया को गतिमान रखना ही हमारा लक्ष्य हो, यही हमारी कामना हो। धर्म की बात करने वाली भाजपा से मुख्यमंत्री बने
शिवराज ने राज-धर्म को छोड़कर सेकुलर होने का धर्म निभाने लगे हैं।
व्यापमं की मलाई तो शिवराज सरकार में से बहुतों ने खाई
है, लेकिन असल बात यह है कि जेल की हवा और कौन-कौन से वीआईपी भविष्य में खाते हैं।
व्यापमं का पूरा नाम है व्यावसायिक परीक्षा मंडल है। यह मध्यप्रदेश सरकार की एक
सरकारी संस्था है जो मेडिकल और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं के
साथ-साथ मध्यप्रदेश की अनेक सरकारी नौकरियों में भर्तियां करने का काम करती है।
इस घोटाले का आगाज़ 2006 से होता है यानी तब से शिकायतें
सार्वजनिक होने लगी थीं। यह अपना वास्तविक आकार तब लेता है,
जब 2013 में इंदौर पुलिस मेडिकल प्रवेश
परीक्षा में बारह लोगों को गिरफ्तार करती है। वहां से मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार
की परतें खुलते-खुलते, शिवराज सरकार की दहलीज तक पहुंच जाती हैं।
सिर्फ मेडिकल की परीक्षा में नहीं बल्कि परिवहन आरक्षक
भर्ती परीक्षा, वन रक्षक भर्ती, फूड इंस्पेक्टर परीक्षा,
डेयरी फेडरशेन भर्ती परीक्षा,
पुलिस सूबेदार एसआई प्लाटून कमांडर परीक्षा,
सिपाही भर्ती परीक्षा में भी घोटाला पकड़ में आता है और
इन मामलों में भी सैंकड़ों लोगों को आरोपी बनाया जाता है। इसे अंजाम देने के लिए
पहले कई नियम बदले जाते हैं जैसे अनुसूचित जाति जनजाति और ओबीसी की आरक्षित सीटों
की कैटेगरी बदलकर रिजर्व कर दी जाती है और अन्य को मेरिट लिखा जाता है।
जून
2014 में एसटीएफ ने लगभग 100 लोगों को गिरफ्तार किया था जिसमें मेडिकल छात्र,
उनके अभिभावक और दलाल शामिल थे। एसटीएफ ने इस मामले में सबसे पहले 130
लोगों के खिलाफ पिछले साल 7
और 9
दिसंबर को दो एफआईआर दर्ज
की थी। व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और प्रिसिंपल सिस्टम
एनॉलिस्ट नितिन महिंद्रा के बयानों के आधार पर पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के खिलाफ
एफआईआर दर्ज की गई थी। पिछले साल 2013 की जुलाई में
इंदौर पुलिस ने पीएमटी परीक्षा देने आए 20 ऐसे छात्रों को पकड़ा,
जो असली छात्रों के नाम पर
परीक्षा दे रहे थे। इन फर्जी छात्रों में से ज्यादातर उत्तर प्रदेश के थे। आगे की जांच में पता चला कि आखिर
किस तरह व्यावसायिक परीक्षा मंडल की हर परीक्षा में फर्जीवाड़ा किया जाता रहा है। उमा भारती ने दिसंबर 2013 में
भी व्यापमं घोटाले की तुलना बिहार के चारा घोटाले से की थी और इसकी जांच सीबीआई को
सौंपने को कहा था क्योंकि इसमें मध्यप्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के तार भी जुड़े
हुए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी।
गुजरात दंगों के आरोप में नरेंद्र मोदी की सुप्रीम
कोर्ट की निगरानी वाली एसआईटी ने जांच की और मोदी से भी पूछताछ की। लेकिन मोदी में
कभी घबराहट नहीं दिखी, कभी उतावलापन नहीं दिखा। शिवराज यदि खुद दोषी नहीं हैं तो
सीबीआई जांच से भाग क्यों रहे हैं? सीबीआई जबर्दस्ती किसी को दोषी तो साबित कर नहीं देगी? मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की जांच
मध्यप्रदेश की पुलिस कभी भी निष्पक्षता से नहीं कर पाएगी। परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा से अनिवार्य फिजिकल टेस्ट
को समाप्त कर दिया जाता है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा
गया है कि 150 भर्ती परीक्षाओं में घोटाला हुआ है।
अखबारों में छपी खबरों के अनुसार 2008
और 2009 की मेडिकल परीक्षा में भी गड़बड़ी निकली है। इसमें पास होने वाले 127
छात्रों की परीक्षा निरस्त कर दी गई है। इनमें से 50 तो डॉक्टर भी बन गए हैं और
इलाज कर रहे हैं। यदि एक भी डॉक्टर ने पेट का ऑपरेशन करके कैंची पेट में ही छोड़
दी तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? मध्य प्रदेश की सरकार या सरकार के मुखिया शिवराज सिंह, जो अपने मंत्रियों पर नियंत्रण नहीं रखने के लिए जाने जाते हैं
या कोई भ्रष्ट मंत्री या घोटाले से संबंधित विभाग के भ्रष्ट अफसर? कोई भी दोषी हो, लेकिन ऐसा डॉक्टर बना मुन्नाभाई शिवराज या उनके किसी मंत्री का
ऑपरेशन तो करेगा नहीं, करेगा तो किसी सामान्य या गरीब आदमी
का, जो दिल्ली या विदेश जाकर ऑपरेशन कराने
में सक्षम न हो। निष्कर्ष यह है कि लोकतंत्र में न्याय का तंत्र काम नहीं करता,
क्योंकि वर्तमान न्याय का तंत्र 18 वर्ष के युवक से हुए अन्याय पर फैसला तब देता
है, जब वह कम से कम बूढ़ा हो गया रहता है। देर से किया गया न्याय, न्याय नहीं,
अन्याय ही होता है।
(लेखक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते हैं)
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