नरेंद्र मोदी (नमो) की ताजपोशी के मायने!
20 दिसंबर 2012
को मोदी ने गुजरात में विधान सभा चुनाव जीतने की हैट्रिक लगाई। मोदी की स्थिति
पार्टी और पार्टी से बाहर देश में '32
दांतों के बीच जीभ से भी बुरी'
है। इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में मोदी ने विजय की हैट्रिक लगाई। उन्होंने
भारत में पहली बार 3-डी तकनीक से एक साथ 50 जगहों पर सजीव भाषण (लाइव
स्पीच) दिया। हैट्रिक
विजय के बाद से ही उनके भाजपा के पीएम उम्मीदवार होने की संभावना बढ़ गई थी।
इससे लगभग 8 माह पहले सुप्रीम कोर्ट
द्वारा गठित एसआईटी से 10 अप्रैल 2012 को गुजरात दंगों के मामले में क्लीन चिट मिल
गई। क्लीन चिट मिलने के बाद संघ के मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ में ‘मोदी की और कितनी अग्नि
परीक्षाएं’ शीर्षक से छपे संपादकीय में संघ ने कहा था कि देश अब
नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर राष्ट्रीय भूमिका निभाते हुए देखना चाहता है। इससे
पहले टाइम मैगजीन ने भी नरेंद्र मोदी पर ‘कवर स्टोरी’ प्रकाशित कर मोदी का कद
बढ़ाया था।
पीएम उम्मीदवार घोषित होने के बाद मोदी ने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि 2014 में देश भ्रष्टाचार, मुद्रास्फीति से निपटने और विकास सुनिश्चित करने के लिए हमारा समर्थन करेगा। देश
मुश्किल हालात से गुजर रहा है और ऐसे में मुझे देश के लोगों का साथ चाहिए। यह आश्चर्य की बात है कि इस अवसर पर मोदी ने राम जन्मभूमि को तो छोड़िए हिंदुत्व तक का एक बार भी जिक्र नहीं किया। जबकि उनके समर्थकों की फौज
पहले हिंदुत्व की ही बात करती है।
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने एक चुनावी सभा में
कहा था, 'हम जीते तो, विकास के गुजरात मॉडल को अपनाएंगें।' गणतंत्र दिवस,
26 जनवरी
पर दिए गए एक विज्ञापन में गुजरात कांग्रेस ने विकास का श्रेय नरेंद्र मोदी को भी
दिया था। अब तो हद हो गई,
जब आगरा में कांग्रेस पार्टी का चुनावी
घोषणा-पत्र जारी होने के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, 'वोटिंग ट्रेंड बदल गया है। विकास पर फोकस करने वालों को ही
सत्ता मिल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं की गुजरात में विकास हो रहा है। यही वजह
है पुन: सरकार बनी। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए शीला दीक्षित ने कहा कि वह
(नरेंद्र मोदी) क्यों बार-बार सत्ता में आ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने विकास को सुनिश्चित किया है।'
किसी को भी मोदी से निपटने का कोई कारगर रास्ता नहीं सूझ
रहा है, जबकि उन्होंने अपनी पार्टी और पार्टी से
बाहर विरोधियों से निपटने के लिए मोदी नाम को गुजरात के विकास का पर्याय बना लिया
है। तभी तो महबूबा मुफ्ती जैसी नेता को भी मोदी की
तारीफ करनी पड़ती है। किसलिए? चेन्नई के एक मुस्लिम व्यापारी की फाइल को सबसे तेजी से कुछ
घंटों में सरकारी महकमों से निपटाकर वापस करने के लिए। क्या देश के तथाकथित
सेक्युलर मुख्यमंत्रियों को ऐसा काम करने से कोई रोकता है? भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2007 में गुजरात के मुसलमानों की प्रति व्यक्ति
आय (पीसीआई) देश में सबसे ज्यादा थी। देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा किया जा सकता
था।
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने एक सभा में कहा था, 'हम जीते तो,
विकास के गुजरात मॉडल को अपनाएंगें।' 2011 के
गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी पर दिए गए एक विज्ञापन में गुजरात कांग्रेस ने विकास का
श्रेय नरेंद्र मोदी को भी दिया था। अब तो हद हो गई, जब आगरा में कांग्रेस पार्टी का घोषणा-पत्र जारी होने के बाद
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, 'वोटिंग ट्रेंड बदल गया है। विकास पर फोकस करने वालों को ही
सत्ता मिल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं की गुजरात में विकास हो रहा है। यही वजह
है पुन: सरकार बनी। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए शीला दीक्षित ने कहा कि वह
(नरेंद्र मोदी) क्यों बार-बार सत्ता में आ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने विकास को सुनिश्चित किया है।'
खास बात यह है कि मोदी ने अभी तक बतौर पीएम अपनी
प्राथमिकताओं की घोषणा नहीं की है। उनके लिए संघ के एजेंडे को राजनीतिक रूप से
लागू करना बहुत मुश्किल भरा होगा। दरअसल संघ चाहता है कि मोदी केंद्र में सरकार
बनाएं और राम मंदिर, अनुच्छेद 370, कॉमन सिविल कोड जैसे संघ के पुराने मुद्दे भाजपा का प्रमुख
एजेंडा बनें।
मोदी की चुनौतियां हिमालय की
तरह हैं। सबसे बड़ी चुनौती 272 का आंकड़ा पार करना है। इसके लिए गठबंधन के सहयोगी
दलों को बढ़ाने की जरूरत है। दूसरे उनकी छवि किसी को साथ लेकर चलने की नहीं हैं,
इसे उन्हें बदलना है। वैसे नेहरू पटेल को और इंदिरा गांधी भी अपने विरोधियों को
साथ लेकर नहीं चले थे, फिर भी वे सफल माने जाते हैं, और वास्तव में हैं भी।
आडवाणी सहित दूसरी पंक्ति के सभी नेताओं जोशी, सुषमा
स्वराज, यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह आदि को साथ लेकर चलना होगा। मोदी को अपनी
पार्टी और गठबंधन दलों की यह धारणा बदलनी होगी कि उनकी छत्रछाया में कोई पनप नहीं
सकता। केवल शिवसेना और अकाली दल से 2014 की फतह नहीं होगी, और सहयोगी दलों को
उन्हें अपने आप से जोड़ना होगा। अपनी कट्टर छवि को उदार बनाना होगा। 80 सीटों वाले
यूपी में 4 नंबर की पार्टी बनी भाजपा को प्रदेश में विजय दिलाना भीषण चुनौती है,
क्योंकि यूपी के हाइवे से ही दिल्ली पहुंचना आसान होगा। बिना येदियुरप्पा के कर्नाटक
और दक्षिण में बीजेपी को स्थापित करना होगा। इसके अलावा संतुलित आर्थिक नीति,
विदेश नीति, पाकिस्तान-चीन नीति, सीमा-विवाद, कश्मीर आदि भी खासे चुनौतीपूर्ण
होंगे।
साथ ही केंद्र सरकार बनने के
बाद यूपीए की तरह राज्यसभा में भी बहुमत जुटाना बड़ा चुनौतीपूर्ण होगा। राज्यसभा
के एक तिहाई सदस्य हर दो साल बाद बदल जाते हैं। इसमें बहुमत के लिए आधे से अधिक
बड़े राज्यों में भाजपा की सरकार होनी चाहिए।
हालांकि मोदी भारतीय
उद्योगपतियों के चहेते हैं, क्योंकि मोदी उनके काम सबसे कम समय में करवाते हैं। अब
तक उनके राज में कहीं भी भूमि अधिग्रहण का विरोध नहीं हुआ है। अक्टूबर 2008 में
ममता बनर्जी और किसानों के विरोध के बाद उन्होंने टाटा की लखटकिया नैनो कार की
फैक्ट्री लगाने के लिए गुजरात आने का न्यौता दिया। कॉरपोरेट दिग्गजों का सर्वाधिक
निवेश गुजरात में है। मोदी ट्विटर का प्रयोग करने वाले सबसे सक्रिय भारतीय नेता
हैं, ट्विटर पर उन्हें 10 लाख से अधिक लोग फॉलो करते हैं। 31 अगस्त 2012 को मोदी
ने गूगल हैंगआउट से देश और विदेश से सवालों के जवाब ऑनलाइन चैट से दिए।
आडवाणी के शिष्य मोदी अपने गुरु आडवाणी के विरोध
के बावजूद पार्टी के पीएम इन वेटिंग हो गए हैं। आडवाणी ने 9 जून
2013 को गोवा कार्यकारिणी बैठक में मोदी को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपने
के 24 घंटे
के भीतर भेजे गये अपने इस्तीफे में लिखा था कि मुझे नहीं लगता कि यह वही आदर्शवादी
पार्टी है जिसे डॉक्टर मुखर्जी, पंडित दीनदयाल जी और वाजपेयी जी ने बनाया और जिस
पार्टी का एकमात्र मकसद राष्ट्र और राष्ट्र के लोग थे। आज हमारे ज्यादातर नेता
सिर्फ अपने निजी हितों को लेकर चिंतित हैं। उनका परोक्ष इशारा नरेंद्र मोदी की ही
ओर था। बाद में संघ प्रमुख मोहन भागवत के दबाव पर बतौर स्वयंसेवक उन्होंने अपना
इस्तीफा वापस ले लिया था।
4 मार्च
2013 को दिल्ली में सम्पन्न बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में आडवाणी ने
पार्टी की राजनीति और विचारधारा को बदलने पर जोर दिया था। आडवाणी ने कहा कि
अल्पसंख्यकों के साथ बीजेपी को विश्वास का रिश्ता बनाना होगा। बीजेपी अल्पसंख्यकों
को विकास करने के लिए वायदों के अधिकारपत्र की विशेष घोषणा करनी चाहिए।
आडवाणी के हिसाब से, बीजेपी की मुस्लिम विरोधी
छवि पार्टी के कांग्रेस जैसे अखिल भारतीय बनने में सबसे बड़ी बाधा है। पिछले
लोकसभा चुनाव के पहले 14
जुलाई 2008 को
दिल्ली में मुस्लिम महिलाओं के सम्मेलन में आडवाणी ने कहा था कि बीजेपी बड़ी पार्टी
हो गई है, लेकिन
मुसलमानों के समर्थन के बगैर उसकी अखिल भारतीयता अभी पूरी नहीं हो पाई है। राममंदिर
आंदोलन के जरिए देश में अभूतपूर्व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने वाले नेता का यह
हृदय-परिवर्तित उद्बोधन था। भाजपा ही नहीं, पूरे भारतीय राजनीति और जनमानस में
आज-कल आडवाणी उदार और मोदी को कट्टर नेता माना जाता है।
उधर सत्ताधारी कांग्रेस में केन्द्र
सरकार की अगले आम चुनावों में हार सुनिश्चित करने वाली छवि बन जाने के बाद राहुल
गांधी को पीएम के रूप में प्रॉजेक्ट करना मुश्किल ही नहीं असंभव सदृश हो गया है। ऐसे
समय में केन्द्र सरकार की अगले आम चुनावों तक जीतने लायक छवि सुधार (डैमेज
कंट्रोल) करने का खासा चुनौतीपूर्ण हो गया है। वैसे कांग्रेस डॉ. मनमोहन सिंह की
तरह किसी गैर दावेदार या गैर राजनीतिक व्यक्ति पर भी दांव लगा सकती है। महात्मा गांधी ने सन् 1939 में कहा था कि मैं भ्रष्टाचार का साथ देने के बजाय संपूर्ण
कांग्रेस को एक अच्छा अंत देना चाहूंगा। लेकिन, कांग्रेस तो बापू की जगह
नेहरू-इंदिरा को अपना प्रवर्तक मानती है। महात्मा गांधी ने जो सात जघन्य पाप बताए
थे, उनमें से दो हैं - सिध्दांतों के बगैर राजनीति और नैतिकता के बगैर राजनीति।
राजनैतिक विचारक ई. एम. कोल का कथन है कि ‘आप राजनीति को चाहे या न चाहे, राजनीति आपको
चाहेगी। उसके हाथ इतने लम्बे हैं कि आपकी गर्दन तक पहुंच जायेंगे।’ राजनीति से नागरिकों को
लाभ मिले या न मिले, नुकसान तो नागरिकों को भुगतना ही पड़ता है। मोदी को भारत में
इस सोच को बदलना होगा कि राजनीति बुरे लोगों का काम है। इन मुद्दों पर अनवरत
प्रयत्नरत रहने पर भारत निश्चित ही एकदिन वास्तविक महाशक्ति बन जाएगा। मोदी का पीएम बनना बड़ी बात नहीं होगी। बड़ी बात होगी, उनका
पीएम बनकर बड़े-बड़े विकासात्मक काम करना, और राष्ट्र को महाशक्ति बनाने वाले
दूरदर्शी निर्णय लेना।
(लेखक युवा पत्रकार हैं)