शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

जीने के लिए फैट बहुत जरूरी है

इंसानी शरीर के लिए वसा बहुत ही जरूरी है क्योंकि यह ऊर्जा का न सिर्फ सबसे प्रभावी स्रोत होता है बल्कि हमारे मस्तिष्क का 60 फीसदी हिस्सा वसा से ही निर्मित होता है। विटामिन ए, डी, ई और के को शरीर में अवशोषित करने और इन्हें एक से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए भी वसा की जरूरत होती है। किडनी, हार्ट और आंत जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की सुरक्षा का भार भी फैट पर ही होता है। कई जरूरी हार्मोन के उत्पादन के लिए भी फैट चाहिए होता है। साफ है कि फैट के बिना इंसानी शरीर का गुजारा नहीं है।

फिर इसे लेकर इतना नकारात्मक माहौल क्यों है? डॉ. मिश्रा के अनुसार जवाब सीधा सा है, अच्छे और बुरे इंसान की तरह फैट भी अच्छा और बुरा होता है। आपको सिर्फ सबसे बुरे प्रकार के वसा ट्रांस फैट को ग्रहण करने से परहेज करना है। 

दिल्ली के एक सरकारी अधिकारी संजय कुमार इन दिनों हृदय संबंधी रोग से परेशान हैं। उनकी परेशानी सिर्फ बीमारी की वजह से नहीं है बल्कि वे यह सोचकर भी परेशान हैं कि खान-पान में इतना परहेज रखने के बावजूद उन्हें यह बीमारी हुई क्यों? दरअसल ये सिर्फ संजय की परेशानी नहीं है, भारत के डॉक्टरों का आमतौर पर मानना है कि यहां आधे से अधिक लोग इसलिए बीमार पड़ते हैं क्योंकि उन्हें उस बीमारी के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं होती और यह भी नहीं पता होता कि चंद बातों का ध्यान रखकर वे आसानी से कई बीमारियों को खुद से दूर रख सकते हैं।

यहां लोग खाना खाते हैं मगर उन्हें यही पता नहीं होता कि जो भोजन खा रहे हैं उसमें शरीर को नुकसान या फायदा पहुंचाने वाली क्या चीजें हैं।  इस बारे में कोई जागरूकता ही नहीं है कि कोई चीज किस तरह पकाई जाए कि उससे अधिकतम लाभ मिले। ऐसी ही एक चीज जिसके बारे में लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं है वह है फैट या वसा। 

दिल्ली के फोर्टिस-सी डॉक अस्पताल के चेयरमैन प्रो. अनूप मिश्रा के अनुसार आमतौर पर लोग खाने में हर तरह के फैट को बुरा मानते हैं और आम धारणा है कि फैट या वसा युक्त चीजें नहीं खानी चाहिए। इसलिए स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग चिकनाईयुक्त सभी तरह की चीजों से परहेज करने लगते हैं मगर सही तथ्य तो यह है कि इंसानी शरीर के लिए वसा बहुत ही जरूरी है क्योंकि यह ऊर्जा का न सिर्फ सबसे प्रभावी स्रोत होता है बल्कि हमारे मस्तिष्क का 60 फीसदी हिस्सा वसा से ही निर्मित होता है। विटामिन ए, डी, ई और के को शरीर में अवशोषित करने और इन्हें एक जगह से दूसरी पहुंचाने के लिए भी वसा की जरूरत होती है। किडनी, हार्ट और आंत जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की सुरक्षा का भार भी फैट पर ही होता है। कई जरूरी हार्मोन के उत्पादन के लिए भी फैट चाहिए होता है। साफ है कि फैट के बिना इंसानी शरीर का गुजारा नहीं है।

फिर इसे लेकर इतना नकारात्मक माहौल क्यों है? डॉ. मिश्रा के अनुसार जवाब सीधा सा है, अच्छे और बुरे इंसान की तरह फैट भी अच्छा और बुरा होता है। आपको सिर्फ सबसे बुरे प्रकार के वसा ट्रांस फैट को ग्रहण करने से परहेज करना है। 

डायबिटीज फाउंडेशन (इंडिया) की वरिष्ठ शोध अधिकारी और ट्रांस फैट के बारे में पिछले कई वर्षों से रिसर्च करने वाली डॉ. स्वाति भारद्वाज के अनुसार हमारे खान-पान में मुख्यत: चार तरह के फैट होते हैं।


1) सैचुरेटेड फैट
यह मुख्यत: जानवरों से प्राप्त होने वाला फैट है जो कई तरह के हार्मोन के बनने और वायरसों से शरीर के बचाव के लिए जरूरी है मगर खास बात यह है कि ज्यादा मात्रा में लिए जाने पर यह शरीर के लिए बहुत नुकसानदेह है। हमारे खाने में यह पूर्ण वसा युक्त दूध, चीज, मक्खन, देशी घी, अन्य डेयरी उत्पादों, मांस तथा मांस उत्पादों और नारियल के तेल से प्राप्त होता है। भोजन में कैलोरी के रूप में जब हम ऊर्जा की गणना करते हैं तो यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस फैट की मात्रा 10 फीसदी ऊर्जा से अधिक न हो। एक ग्राम फैट 9 कैलोरी के बराबर होता है।

अन सेचुरेटेड फैट
2) मोनो अन सेचुरेटेड फैट या मुफा का
यह शरीर के लिए सबसे अच्छा फैट माना जाता है और खाने में कुल कैलोरी में इसका हिस्सा 10 से 15 फीसदी तक हो सकता है। यह शरीर में हृदय रोग के लिए जिम्मेदार बुरे कैलस्ट्रोल को नियंत्रित करता है और कुछ तरह के कैंसर से भी बचाता है। यह सरसों, जैतून, कैनोला, चावल की भूसी से तैयार तेलों और मूंगफली, बादाम और पटसन के बीज के तेलों से मुफा प्राप्त किया जा सकता है।

3) पॉली अनसेचुरेटेड फैट या पुफा
यह दो तरह के फैटी एसिड से बनता है। पहला है ओमेगा 3 और दूसरा ओमेगा 6 फैटी एसिड। पुफा भी शरीर के लिए अच्छा फैट है। ओमेगा 3 मस्तिष्क के बेहतर संचालन और शरीर के सामान्य विकास के लिए जरूरी है। ओमेगा 6 नर्व सेल्स का मुख्य अवयव होता है। मछली, समुद्री भोजन, वेजीटेबल तेल, फलियों से मिलने वाले तेल और बीजों से मिलने वाले तेल से इसकी प्राप्ति होती है।

डॉ. स्वाति के अनुसार लोगों को अच्छे फैट के साथ-साथ खराब फैट यानी ट्रांस फैट की जानकारी रखना भी जरूरी है क्योंकि भोजन में ट्रांस फैट की मौजूदगी शरीर में बुरे कैलेस्ट्रोल (एलडीएल) की मात्रा बढ़ाती है और अच्छे कैलेस्ट्रोल (एचडीएल) की मात्रा को कम कर देती है। इसके कारण हृदय रोग का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है। खास बात यह है कि ट्रांस फैटी एसिड से निर्मित यह फैट पूरी तरह हमारे भोजन के तरीके से ही पैदा होता है और खाना पकाने में जरा सी सावधानी रखकर शरीर में इसकी मात्रा सीमित की जा सकती है।
 
डॉ. स्वाति कहती हैं कि शरीर में ट्रांस फैट मुख्यत: खाद्य तेलों के जरिये पहुंचता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन सा तेल इस्तेमाल करते हैं, तेल को गर्म करने के बाद उसमें ट्रांस फैट अपने आप उत्पन्न हो जाता है। बाजार में कई ऐसे ब्रांड हैं जो दावा करते हैं कि उनके तेल में ट्रांस फैट नहीं है, यह दावा तभी तक सही है जब तक उस तेल को गर्म न किया जाय।

तेल को जितनी बार गर्म करेंगे, उतनी बार बढ़ती है ट्रांस फैट की मात्रा

डॉ. स्वाति द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी साफ होता है कि एक ही तेल को अगर बार-बार गर्म किया जाए तो उसमें ट्रांस फैट की मात्रा बढ़ती चली जाती है। और कड़ाही में पड़े तेल में कोई चीज छानने के बाद बचे तेल को जितनी बार खाद्य पदार्थों को छानने के लिए इस्तेमाल किया जाता है उसमें ट्रांस फैट की मात्रा उतनी ही बढ़ती चली जाती है।

बचे तेल का प्रयोग खाद्य पदार्थों को छानने में कतई न करें
बाजार में मिलने वाले कई तेल ब्रांडों पर प्रयोगशाला में किए गए अध्ययन के बाद यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है। वह सलाह देती हैं कि घर में कोई भी चीज छानने के बाद बचे तेल को जहां तक संभव हो दोबारा इस्तेमाल न करें, अगर ज्यादा तेल बच गया हो और उसे फेंकना संभव न हो तो थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उस तेल का सब्जी बनाने में इस्तेमाल करें, छानने में तो बिलकुल न करें।

इतना ही नहीं डॉ. स्वाति और उनकी टीम ने बाजार में मिलने वाले खाद्य पदार्थों मसलन, समोसा, कुकी बिस्किट्स, केक-पेस्ट्रीज और ऐसे ही अन्य फास्ट फूड की भी जांच की और पाया कि सभी में ट्रांस फैट बड़ी मात्रा में मौजूद है। ऐसा सिर्फ सड़क किनारे के ढाबे से लिए गए सैंपल के साथ ही नहीं हुआ बल्कि अच्छे रेस्टोरेंट से लिए गए सैंपल में भी यही बात देखी गई। किस तेल में गर्म करने से पहले और गर्म करने के बाद ट्रांस फैट की कितनी मात्रा पाई गई इसे बॉक्स में देखा जा सकता है। 

डॉ. अनूप मिश्रा के अनुसार ट्रांस फैट सिर्फ हृदय रोग ही नहीं बल्कि मधुमेह तथा कैंसर, लिवर समस्या, प्रजनन संबंधी दिक्कत, अस्थमा, दिमागी परेशानी आदि कई बीमारियां हो सकती हैं। उन्होंने कहा, 'ऐसा अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि गलत मात्रा, गुणवत्ता और प्रकार तथा खाना पकाने का तरीका भारत में डायबिटीज और हृदय रोगों का सबसे प्रमुख कारण है। अगर हम खाने से ट्रांस फैट को दूर रखें तो शहरी जीवन-शैली के कारण होने वाली कई सारी बीमारियों को भी खुद से दूर रख सकेंगे।'

डॉ. मिश्रा ने यह भी कहा कि हालांकि सभी तेलों और यहां तक कि देसी घी में भी ट्रांस फैटी एसिड पाया गया है मगर यहां यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरसों तेल, जैतून के तेल और कैनोला तेल में सबसे अधिक मुफा, पुफा पाया जाता है इसलिए खाने में अन्य किसी तेल के मुकाबले इन्हें शामिल करना चाहिए। 
साभार: आउटलुक हिंदी


Ghee is free of trans fats
Desi ghee helps in lubricating the muscle and boosts immunity. There is a certain fear in recent times about desi ghee being fattening. However, the truth is, desi ghee has a unique short chain fatty acid structure, which is lipolytic by nature and helps in breaking down fat. Unlike other oils, ghee is free of trans fats. "You should have one spoon of ghee daily," says experts. So, don't think twice before having it in your next meal.


एक महिला को प्रतिदिन 70 ग्राम वसा का सेवन करना चाहिए एक पुरुष को प्रतिदिन 95 ग्राम वसा का सेवन करना चाहिए और 5-10 साल के बच्चों को प्रतिदिन 70 ग्राम वसा की अवसक्ता होती है।
यदि आपको प्रतिदिन 2000 कैलोरी की जरूरत है तो इन कैलोरी का 32 से 43% आपको फैट से मिलना चाहिए। क्योंकि हर एक ग्राम फैट में 9 कैलोरीज होती है, इसका अर्थ है कि आपको प्रतिदिन 70 से 95 ग्राम फैट युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए इससे आपको 2000 कैलोरी में से 630 से 855 कैलोरी मिल जाएंगी।


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