बढ़ते
मोदी-बढ़ता एनडीए, दंगे और कांग्रेस Increasing Modi - increases the NDA, riots and Congress
कुन्दन पाण्डेय
कोलगेट मामले पर प्रदर्शन करता एनडीए। जेडीयू के शरद यादव अब एनडीए का हिस्सा नहीं हैं। |
कांग्रेस नीत यूपीए-2 सरकार के प्रमुख घटक सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार
ने 17 मार्च 2014 को कहा है कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए भाजपा के पीएम
उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। शरद पवार ने अपना बयान उस
वक्त दिया है, जब ठीक एक दिन पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष
राहुल गांधी ने 2002 दंगों में मोदी को एसआइटी द्वारा क्लीन
चिट दिए जाने को जल्दबाजी करार दिया था। राहुल ने इसके लिए जिम्मेदारी तय किए जाने
की बात कही, लेकिन राहुल भाजपा के इस संभावित आरोप का
जवाब नहीं दे पाएंगे कि सिख दंगों के लिए किस सरकार के प्रमुख की जिम्मेदारी तय की
जाए? हालांकि, शरद पवार ने स्पष्ट करते हुए कहा कि वह लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में
संप्रग के साथ ही रहेंगे।
दूसरी तरफ डीएमके से निलंबित किए गए एम
करुणानिधि के बड़े बेटे एमके अलागिरी ने 17 मार्च 2014 को कहा कि वह प्रधानमंत्री के तौर पर
मोदी का स्वागत करते हैं। एक समाचार चैनल के साथ खास बातचीत में अलागिरी ने कहा, मोदी एक अच्छे प्रशासक हैं और लोकसभा चुनाव को लेकर देशभर में मोदी की लहर
है। अलागिरी ने कहा कि अगर मोदी पीएम बनते हैं तो मैं उनका स्वागत करूंगा। मदुरै
से सांसद और केंद्र में मंत्री रह चुके अलागिरी को तमिलनाडू की 39 लोकसभा सीटों के लिए हाल में जारी डीएमके की लिस्ट में जगह नहीं मिली है।
शरद पवार के इस चुनावी मौसम
वाले बयान का एक गंभीर राजनीतिक अर्थ है। वह यह है कि यदि आम चुनाव 2014 के बाद यूपीए की सरकार बनने की कोई
संभावना नहीं हुई तो वह एनडीए में शामिल होंगे। शरद पवार ने अपने बयान से संकेतों
में एनडीए से अपने दरवाजे को राकांपा के लिए खोले रखने को कहा है। यह राष्ट्रहित
में भी है क्योंकि शरद पवार ही जिगर रखने वाले ऐसे कांग्रेसी क्षत्रप हैं जिन्होंने
सोनिया के विदेशी मूल के मूद्दे पर कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाई और 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों में अपनी
जड़ें मजबूत कीं। स्वतंत्र भारत में पहली बार ईसाई धर्म की एक विदेशी नागरिक
सोनिया गांधी 1998 से 2000 तक कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं।
उनकी योग्यता मात्र यह थी कि वह राजीव गांधी की विधवा हैं।
शरद पवार की पार्टी राकांपा के नाम में
राष्ट्रवादी शब्द पहले आता है। भाजपा राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी झंडाबरदार है। दो
राष्ट्रवादी देश में विकास की राजनीति करने और विकास करने वाली सरकार बनाने के लिए
आसानी से एक हो सकते हैं। पवार ने बड़ी दूरदर्शिता वाली बात यह कही कि दूसरी सभी
राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की तरह नरेंद्र मोदी के साथ भी उनके अच्छे संबंध
हैं। उन्होंने कहा कि वह शत्रुता की राजनीति में यकीन नहीं रखते हैं। बाद में शरद पवार के अपने बयान से पलटने का वर्तमान राजनीतिक
परिदृश्य में कोई अर्थ नहीं है।
एक समाचार चैनल को दिए अपने साक्षात्कार
में राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि 2002
के गुजरात दंगा मामले में जब कोर्ट ने
नरेंद्र मोदी को दोषमुक्त कर दिया है तो फिर उन्हें इसके लिए जिम्मेदार नहीं
ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कोर्ट ने कुछ कहा है तो हमें इसे स्वीकार
करना चाहिए। कांग्रेस और उसके नेता तो अपने उपर लगे आरोपों पर तर्क देते हैं कि 64 करोड़ के बोफोर्स तोप दलाली की जांच पर 64 करोड़ से अधिक खर्च हो चुका है,
इसलिए इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। यह
न्याय का कैसा सिद्धांत है? सबसे सुविधाजनक सिद्धांत या निराधार
कांग्रेसी सिद्धांत।
25 फरवरी 2014 को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नई
दिल्ली में कहा था कि भाजपा ने किसी दंगे को सही नहीं बताया। उन्होंने कहा, ‘‘1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के सिख विरोधी दंगों के लिए
हमने नहीं कहा था कि ‘बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’। यह उस समय के प्रधानमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता राजीव गांधी ने कहा
था।’’
1984 के दंगे टीवी युग के आने के पहले हुए थे। टीवी पर चलने वाले
वीडियो घटनाओं को जल्दी भूलने नहीं देते। 1984 के दंगों के बाद राजीव सरकार इसलिए बच गई, क्योंकि उस दंगे के वीडियो को स्थायी रूप से कैमरे में कैद नहीं किया गया था। 84 के दंगों पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसायटी ने न्याय के पक्ष में उस तरह से ठोस काम नहीं किया जैसे गुजरात दंगों के मामले में किया गया। दंगों के कुछ हफ्तों के
भीतर हुए आम चुनाव में राजीव गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस
सरकार को भारी बहुमत के रूप में 415 सीटें मिलीं, जिसने उसकी कार्रवाई को लगभग उचित ठहरा दिया और हत्याकांड के दाग धो डाले। लेकिन बोफोर्स तोप दलाली के बाद के 1989 के आम चुनावों में कांग्रेस को 197 सीटें मिलीं।
गुजरात
दंगे में मारे गए लोगों की अधिकृत संख्या में 790 मुस्लिम, 254 हिन्दू
और 223 लापता लोग शामिल हैं। तीनों संख्याओं का
कुल योग 1267 है। गृह राज्यमंत्री
मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया था कि
आहूजा कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 1984 के
सिख विरोधी दंगों में लगभग 2,733 लोग
मारे गए थे। दिल्ली में 650 मुकदमें
दर्ज किए गए। कुल 3,163 लोग गिरफ्तार किए गए, इनमें
से 442 लोग दोषी सिद्ध हुए और 2706 लोग
दोषमुक्त होकर बरी हो गए। दो मुकदमों के आरोपी 15 लोगों
पर अभी भी जांच चल रही है।
कोर्ट में अपराध सिद्ध होने की दर 2002 के गुजरात दंगे की सिख दंगे से काफी अधिक है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने न्याय व्यवस्था को तेजी से मुकदमों का फैसला करने पर मजबूर कर दिया।
गुजरात में 1044 लोग मारे गए और सितंबर 2012 को नरोडा-पाटिया मामले में मंत्री माया कोडनानी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है। जबकि 1984
के सिख विरोधी दंगों को हुए 29 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन किसी वरिष्ठ कांग्रेसजन का अपराध अभी तक सिद्ध नहीं किया जा सका है
जबकि हिंसक घटनाओं में राजनीतिक हाथ होने के प्रमाण मौजूद हैं।
सतपाल सिंह रावत उर्फ सतपाल महाराज ने गुजरात के मुख्यमंत्री
की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी भारत को चीन से आगे
ले जाएंगे। कांग्रेस पार्टी से पौडी सीट से सांसद महाराज की पत्नी अमृता रावत
उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस की विधायक हैं। केंद्रीय मंत्रिपद के साथ-साथ
कांग्रेस का साथ छोड़ देने वाली डी पुरंदेश्वरी एवं उनके पति आंध्र प्रदेश के पूर्व
मंत्री डी. वेंकटेश्वर राव, जनरल वीके सिंह, मनोज तिवारी, जेडीयू से राज्यसभा सांसद एनके सिंह, राजद प्रमुख लालू के
दाहिने हाथ रामकृपाल यादव, जगदंबिका पाल और राजू श्रीवास्तव
कभी कांग्रेस के करीब रहे वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एमजे अकबर भाजपा
में शामिल हो गए। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को उस वक्त करारा झटका लगा,
जब उसकी ओर से भिंड संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाए गए डॉ.
भागीरथ प्रसाद ने बीजेपी की सदस्यता ले ली। मध्य प्रदेश के ही होशंगाबाद से कांग्रेस सांसद राव उदय प्रताप
सिंह 2013 में ही बीजेपी में शामिल हो गए थे।
12 साल बाद लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) प्रमुख राम विलास पासवान और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 27 फरवरी 2014 को साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। कांग्रेस के
पास मोदी से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं है, दुष्प्रचार से मोदी का कुछ नुकसान होने वाला है नहीं। मोदी और एनडीए दोनों
जैसे-जैसे चुनाव पास आ रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ते जा रहे हैं। 2007 के गुजरात
चुनाव में सोनिया ने मोदी को मौत का सौदागर कहा था, बदले में मोदी को पूर्ण बहुमत मिला। तब से कांग्रेस हाईकमान ने मोदी पर
व्यक्तिगत टिप्पणी करने पर पाबंदी तो लगा दी, किन्तु लगता नहीं कि बढ़ते मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस के पास कोई
विकल्प है? इसी तरह आगे बढ़ते रहे मोदी के लिए केंद्र में सरकार बनाना कतई
नामुमकिन नहीं लगता।
(लेखक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मामलों पर लिखते हैं।)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें