बुधवार, 9 सितंबर 2009

आरक्षण: 9 दिन चले अढ़ाई कोस पीछे

हे भारत सरकार! आप ऐसा विकास न करिए, जिससे विकास-शोषित पैदा हों


आप चौंकिए मत! हम 61 साल से आरक्षण पथ पर चल तो रहे है, लेकिन आगे की तरफ नहीं बल्कि पीछे की तरफ। प्रमोशन में आरक्षण को खत्म करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ पीठ के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़ी नियमावली 8 ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। इससे आरक्षण पर देश में शांत हो रही बहस की चिंगारी में फिर से आग धधकने की संभावना है। जाने हमारा देश कैसा विकास करता है कि हर कुछ समय बाद, कुछ लोग तेजी से पिछड़ जाते हैं और फिर उन्हें आरक्षण दे दिया जाता है। कभी यह मूल्यांकन करने के बारे में सोचा भी नहीं जाता कि 61 साल से दिए जा रहे आरक्षण से कितना लाभ अब तक मिला, यह देख लें। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक संसद-संविधान रहेगा यह आरक्षण अक्षुण्ण रहेगा।

आरक्षण की व्यवस्था संविधान सभा ने 10 वर्ष के लिए अंगीकृत की थी, लेकिन नेताओं ने इसे हर बार 10 वर्ष के लिए संविधान संशोधन करके बढ़ाते-बढ़ाते 6 दशक से अधिक तक के लिए लागू कर दिया है। अभी तक इसकी समाप्ति की कोई निश्चित कालावधि तक नहीं तय की जा सकी है। आप तय करिए कि नीयत संविधान सभा के सदस्यों की श्रेष्ठ थी, या आज के भ्रष्ट नेताओं की। संविधान सभा ने OBCs (अन्य पिछड़ा वर्ग) को आरक्षण क्यों नहीं दे दिया?


संविधान सभा के अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) को आरक्षण देने के बाद से 30-40 सालों में ऐसा विकास हुआ कि एक नया शोषित वर्ग पैदा हो गया OBCs, मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट में भारत की कुल 3,743 जातियों को पिछड़ा माना। इनकी जनसंख्या, कुल जनसंख्या का 52 पर्सेंट थी। अत: OBCs को 27 पर्सेंट आरक्षण मिल गया।


अदालती आदेश के बाद 1993से यह लागू हो गया। फिरमनमोहनी मॉडल से एलपीजी अपनाकर और तेज, सबसे तेज विकास हुआ देश का। परिणाम, एक और वर्ग शोषित हो गया। विकास-शोषित। फिर अलीगढ़ मुस्लिम विवि के 36 पाठ्यक्रमों में मुस्लिमों को 50 पर्सेंट आरक्षण, आंध्र की कांग्रेस सरकार द्वारा मुस्लिमों को 5 पर्सेंट आरक्षण। इस समय तक विकास ‘FDI’ के घोड़े पर सवार होकर वायु वेग से गतिशील था। फिर एक विकास-शोषित पैदा हुआ। और अब ITT, IIM, NIT, AIIMS तथा अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में 27 पर्सेंट आरक्षण। हे भारत सरकार! आप ऐसा विकास न करिए, जिससे विकास-शोषित पैदा हों।


अब तो विकास का सबसे पैना (तेज धार वाला) मॉडल लॉन्च हुआ है ‘PPP मॉडल। दिल से जतन करिए इस विकास से पैदा होने वाले अगले विकास-शोषित वर्ग को आरक्षण मिलने की शुभकामनाएं देने के लिए।


संविधान के अनुच्छेद 338, 339, 340, 341, 342 में राष्ट्रपति को आरक्षण के संबंध में विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 330, 332, 334 के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों में तकरीबन 23 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इसमें से अनुसूचित जातियों (SCs) के लिए 15 पर्सेंट और अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए 7.5 पर्सेंट आरक्षण की व्यवस्था है। इस प्रकार 543 में से 120 लोकसभा सीटें SCs, STs के लिए आज भी आरक्षित हैं।


OBCs के लिए मण्डल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के विरोध में लगभग 207 आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयास के मामले सामने आए। मण्डल ने देश में 3743 पिछड़ी जातियां चिह्नित की थीं। इसमें सभी धर्मों के लोग थे और इनकी कुल जनसंख्या देश की 52 पर्सेंट थी। परन्तु राजनीति प्रेरित प्रतीत हो रहे इस निर्णय को चुनौती देने पर, उच्चतम न्यायालय ने इसे कुछ शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। उच्चतम न्यायलय के आदेश से 1993 से OBCs को 27 पर्सेंट आरक्षण मिला लेकिन कोर्ट का आदेश है कि इन जातियों के समृद्ध लोगों (Creamy Layer) को इसका लाभ नहीं मिलेगा। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी अभी तक क्रीमी लेयर निर्धारण का काम नहीं हो पाया है।


आर्थिक आधार पर नरसिम्हा राव सरकार के पिछड़ों के 10 पर्सेंट के आरक्षण को रद्द करते हुए माननीय न्यायालय ने व्यवस्था दी कि, किसी भी स्थिति में आरक्षण 50 पर्सेंट से अधिक नहीं होगा। लेकिन तमिलनाडू में 69 पर्सेंट आरक्षण क्यों विद्यमान है, क्या तमिलनाडू उच्चतम न्यायालय की परिधि में नहीं आता? शायद विश्व के किसी संविधान में आरक्षण स्थायी रूप से नहीं है। अभी (फरवरी 2012 में) जाट भाईयों का आरक्षण के लिए आंदोलन चल रहा है। अक्टूबर 1999 में एनडीए सरकार ने राजस्थान में जाट को पिछड़ा वर्ग घोषित कर दिया था। लेकिन यह उन्हें मिल नहीं पाया।


अभी यूपी-2012 चुनावों में मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए कांग्रेस, कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी (वी. एस. अच्युतानंदन के शब्दों में अमूल बेबी’) सलमान खुर्शीद जैसे जेहाद छेड़े हुए हैं। इसका कारण यह है कि आजादी के समय देश में मुसलमानों की जनसंख्या 8 पर्सेंट से बढ़कर दहाई से अधिक हो गई है। मुसलमान वोट हिन्दू वोटों की तरह जाति में बंटे नहीं है, वे एक साथ जिस प्रत्याशी को 60 पर्सेंट वोट पड़ने पर मिले, उसकी जीत पक्की। भारत में यही एक वोट बैंक है जो रोज बढ़ेगा, और हिन्दुओं की तरह कभी भी जातियों में नहीं बंटेगा। बाकी कुछ मुस्लिम गलियों में सोनिया, राहुल सहित कोई भी नेता नहीं जा सकता क्योंकि वहां पैदल जाना होगा।


पटना में 13 फरवरी, 2012 को सीएम नीतीश कुमार ने कहा, जब केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी, तो मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाना था। उस समय विपक्ष के नेता राजीव गांधी ने इसका विरोध किया था। उन्होंने लोकसभा में 3 घंटे तक भाषण दिया और 13 बार पानी पिया। आज वही कांग्रेस मुस्लिमों को आरक्षण देने के नाम पर नाटक कर रही है।


संविधान सभा में नजीरुद्दीन अहमद ने कहा, “मैं समझता हूं कि किसी प्रकार के रक्षण (आरक्षण), स्वस्थ राजनीतिक विकास के प्रतिकूल हैं। उनसे एक प्रकार की हीन भावना प्रकट होती है।...श्रीमान रक्षण ऐसा रक्षा उपाय है जिससे वह वस्तु जिसकी रक्षा की जाती है, वह नष्ट हो जाती है। जहां अनुसूचित जातियों का संबंध है, हमें कोई शिकायत नहीं है।मो. इस्माइल ने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि एक वर्ग से दूसरे वर्ग को अलग करने के लिए धर्म को आधार बनाने में कोई हानि है।’ (संविधान सभा वाद विवाद 25/05/1949) जेड. एच. लारी ने कहा, ‘आपको SCs के हितों की चिंता है, लेकिन आप मुस्लिम हितों की परवाह नहीं करते। बहस देर तक चली।


आरक्षण-बहस का जवाब देते हुए सरदार पटेल ने मुस्लिम तुष्टिकरण पर चेताते हुए कहा था कि, “जिन लोगों के दिमाग में लीग (मुस्लिम लीग) का ख्याल बाकी है कि एक मांग (देश विभाजन) पूरी करवा ली तो पुन: उसी योजना पर चलना है...मेहरबानी करके अतीत भूल जाइए। अगर ऐसा असंभव है तो आपके विचार में जो सर्वोत्तम स्थान (देश) है, आप वहां चले जाइए। अल्पमत का भविष्य इसी में है कि वह बहुमत का विश्वास करे। जो अल्पमत देश का विभाजन करवा सकता है, वह हरगिज अल्पमत नहीं हो सकता।


स्वर्गीय वली खान की पुस्तक फैक्ट्स आर फैक्ट्समें सर सैय्यद अहमद खान की टिप्पणी है, ‘भारत का प्रत्येक नागरिक, भले ही उसका धार्मिक विश्वास और मान्यताएं कुछ भी हो, हिंदू है, क्योंकि वह हिंदुस्तान में रहता है।


मार्क्सवादी विचारक डॉ. रामविलास शर्मा ने (गांधी, अंबेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएं) लिखा कि, “अपने सुधारों के द्वारा जैसे अंग्रेज हिंदुओं और मुसलमानों में फूट डाल रहे थे, वैसे ही जाति प्रथा के आधार पर वे हिंदुओं में फूट डाल रहे थे।... अंग्रेजों से तो यह आशा नहीं की जा सकती थी कि वे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन करेंगे। अंग्रेजों ने जो आरक्षण नीति चलाई उसी नीति पर कांग्रेसी नेता भी बढ़े।


अनुच्छेद 340के तहत 1953 में काका कालेलकर आयोग गठित हुआ। आयोग ने राष्ट्रपति को लिखा, समानता वाले समाज की ओर प्रगति में जाति प्रथा बाधा है। कुछ निश्चित जातियों को पिछड़ा मानने से यह हो सकता है कि हम जाति प्रथा के आधार पर भेदभाव को सदा के लिए बनाए रखें। आज यही हो रहा है। जाति का जहर नस-नस में आरक्षण से घुल रहा है। यह पितृसत्तामक समाज को भी बढ़ावा दे रहा है। क्योंकि लड़कियां आमतौर पर अपने पति की जाति का अनुसरण कर लेती हैं।


एक शख्स ने, उसके पिता ने, उसके दादा ने किसी दलित को न सताया, न पिछड़ा बनाया। संयोग से आज उसकी तीसरी पीढ़ी देखती है कि इन 61 सालों में कई परिवारों की लगातार तीन पीढ़ियों को आरक्षण मिलने पर भी वो पिछड़े हैं, तो वे गरीबों की तरह हैं। जैसे गरीब को एक लाख दे दो, या चोर-डाकू करोड़ों लूट ले, लेकिन वो प्रगति के लिए प्रयत्न न करने के कारण फिर से सड़क पर आ जाते हैं।


किसी सामान्य जाति शख्स के पिता की, पूर्व (पूरखों) की 10 वीं, 100 वीं या 1000 वीं पीढ़ी ने दलितों पर अत्याचार किए तो उसकी आरक्षण के रूप में वर्तमान पीढ़ी को सजा क्यों दी जा रही है? यह न्याय का कौन सा सिद्धांत है कि एक पीढ़ी के अपराध की सजा उसकी आने वाली कई पीढ़ियों को दी जाए? फिर भी गांवों की इन आरक्षित जातियों के बहुसंख्यक परिवारों को अभी तक यह आरक्षण नहीं मिलने की जिम्मेदारी कौन लेगा?


आरक्षण के वर्तमान का स्वरूप का घोर विरोध होना चाहिए, स्वरूप बदलकर चले तो कोई हर्ज नहीं। एक समृद्ध ब्राह्मण या क्षत्रिय या कायस्थ अपने बच्चों को जैसी श्रेष्ठ शिक्षा, पौष्टिक भोजन, लालन-पालन का उच्च परिवेश, देता है। सरकार अपने खर्च पर SCs, STs और OBCs  के बच्चों को गोद (शिक्षा पूरी करने तक के लिए) लेकर वो सारी सुविधाएं दे, जो एक समृद्ध सामान्य वर्ग का व्यक्ति अपने बच्चे को देता है।


आरक्षण का एक और सर्वमान्य व निर्विवाद हल यह है कि जिस-जिस जाति की राष्ट्रीय या प्रादेशीय जनसंख्या में जितने प्रतिशत भागीदारी हो, उसको उतनी सीटें दे दी जाएं। हर दशक बाद होने वाली जनसंख्या से इसका निर्धारण कर दिया जाय। OBCs की जनसंख्या लगभग 52 प्रतिशत है। किसी को भी OBCs को 52 पर्सेंट सीटें मिलने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। इसी बात पर सामान्य वर्गों के लोगों की बोलती बंद हो जाती है।


सरकार एक धनी माता-पिता के पाल्य की तरह, सारी सुविधाएं दे, महीना 10 हजार छात्रवृत्ति दे, लेकिन अंक या कट ऑफ 1 पर्सेंट भी हरगिज नहीं। 1 पर्सेंट भी अंकों में आरक्षण देने को न्यायसंगत नहीं सिद्ध किया जा सकता। आरक्षितों के 40-50 पर्सेंट और सामान्य वर्गों के 60 पर्सेंट को बराबर करने से हमारा देश ग्लोबीकरण में चीन, अमेरिका, जापान, कोरिया सहित अन्य विकसित देशों से कॉम्पिटिट नहीं कर पाएग। सनद रहे, विश्व में भारत को कोई आरक्षण नहीं देगा। न कोई देश देगा, न UNO


आरक्षण को 25 साल की एक पीढ़ी मानकर, 5 या 10 पीढ़ी तक लागू रखकर समाप्त करना होगा। हर साल 1 – 1 पर्सेंट कटौती करके भी इसे समाप्त किया जा सकता है। क्योंकि कौन गारंटी लेगा कि भारतीय लोकतंत्र के 100 साल के युवा या 250 साल के वृद्ध होने पर आरक्षण का लक्ष्य हासिल हो जाएगा, और आरक्षण समाप्त हो जाएगा? लोकतंत्र के एक्सपर्ट कहते हैं कि, लोकतंत्र 100 सालों में युवा होता है।


आरक्षण को एक निश्चित समय-सीमा में समाप्त करने की व्यवस्था की जाए। अन्यथा ग्लोबीकरण में पर्सेंट में छूट को हटाकर उन्हें उच्च जातियों की तथाकथित सारी समृद्ध व्यवस्थाएं दी जाएं। क्योंकि सरकारी नौकरियां दिनोंदिन घटकर लगभग समाप्त हो रही हैं, और प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण मिलने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। सीधी बात है, नेता वोटबैंक के लिए छल रहे हैं।


नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के अनुसार 1983 में SCs के 48.9 पर्सेंट स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 1993-94 में बढ़कर 64.3 पर्सेंट हुई। जबकि इसी समयावधि में सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या 59.2 से बढ़कर 74.9 पर्सेंट हो गई। विश्व बैंक के अनुसार 


2002 में पूरी दुनिया में स्कूल न जाने वाले बच्चों में से 25 पर्सेंट भारत से थे। वर्ष 2011 तक भारत में 80 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। आरक्षण से आज तक दूसरा अंबेडकर पैदा नहीं हुआ। इसका अर्थ यह है कि अंबेडकर जैसी प्रतिभा, आरक्षण से पैदा हो ही नहीं सकती।  


इसका एक और सर्वमान्य हल है कि राष्ट्रीय और प्रांतीय जनसंख्या में जिस जाति का जितना प्रतिशत हो, उसे उतना प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाय। मानिए यदि राष्ट्रीय जनसंख्या में OBCs का 54 प्रतिशत अंश है तो उसे  54 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाए, लेकिन ब्राह्मणों को यह कदापि बर्दाश्त नहीं होगा।


जो स्कूल नहीं गया, उसके लिए आरक्षण कैसे लाभप्रद हो सकता है? छलिया लोक कल्याणकारी राज्य यह बताए कि अनपढ़ों या हाइस्कूल भी न पास कर पाने वाले आदिवासियों, SCs, STs को यह आरक्षण कैसे लाभ पहुंचा पाएगा? इससे होगा यह कि, भारत के आधुनिक विकसित समाज में जातिगत पहचान अपनी प्रखर असभ्य उपस्थिति दर्ज कराता रहेगा। इससे समाज में विघटन ज्यादा और सौहार्द्र कम होगा। परिणाम यह होगा कि हम समाज को बजाय आगे ले जाने के, 9 दिन में अढ़ाई कोस पीछे लेकर चले जाएंगे। केवल आरक्षण से सामाजिक समानता का विराट-लक्ष्यअप्राप्य ही रहेगा।


भ्रष्टाचार व लोकपाल के भंवर में फंसा भारतीय लोकतंत्र



भविष्य का मीडिया और सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकार