
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
आंतरिक सुरक्षा मीड़िया के लिए बिकाऊ नहीं

विज्ञान सम्मत है भारतीय संस्कृति
यजुर्वेद के अनुसार सुखपूर्वक जीवन जीने के लिए विज्ञान के आविष्कार आवश्यक हैं।

पश्चिम की संस्कृति से पूर्व की संस्कृति अर्थात भारत एवं भारतीय संस्कृति किन कारणों से महान है यह प्रश्न देश के युवाओं के मन में बार-बार उठता है। हमारे यहाँ के कुछ प्रौढ़ लोग ज्ञान-विज्ञान सहित विकास की परंपरा को नकारते हुए धर्म, अध्यात्म, जप, तप, व्रत एवं पूजा-पाठ आदि को ही भारतीय संस्कृति मानते हैं। वर्तमान परिवेश में जब कोई युवा मंदिर नहीं जाता या तिलक नहीं लगाता, तो घर के बुजुर्ग भरे लहजे में कोसते हुए एक ही राग अलापते हैं, क्या करें जमाना बदल गया है। आजकल के युवा संस्कृति, संस्कार एवं परंपराओं को भूलकर बस पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं।
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
नक्सलवाद : सरकार में दृढ़ संकल्प का अभाव
नक्सलियों से निपटने की रणनीति अस्पष्ट

भविष्य का मीडिया और सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकार

बुधवार, 11 अगस्त 2010
सोमवार, 3 मई 2010
ठंडे बस्ते में समान नागरिक संहिता
संसद के सन् 2002 के एक सत्र में गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के प्रस्ताव पर लम्बे समय बाद लोकसभा में समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर जोरदार बहस की स्थिति अधिक समय बाद उत्पन्न हुई, किन्तु इस विषय पर जिस गंभीरता के साथ चर्चा होने की अपेक्षा थी वैसी चर्चा नहीं हुई। यद्यपि कुछ अपवादों के अतिरिक्त देश के विशेष और आम आदमी सभी यह सोचते और मानते हैं कि राष्ट्रीय एकता-अखण्डता के लिए देश में एक संविधान और एक समान कानून का सिद्धांत चलना चाहिए। एक आम धारणा यह भी है कि गांधी, नेहरु और अम्बेडकर के नाम पर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने वाले लोग और दल उनके बनाए संविधान को पूर्णतः लागू करने के मुद्दे पर अभी भी तैयार नहीं है, आगे भी जल्दी तैयार नहीं होगें। इस बहस में भी इस अतिमहत्व के मुद्दे को महज मज़हबी अल्पसंख्यकवादी राजनीतिक नजरिये से देखा गया।
लेबल:
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राजनीति,
लोकतंत्र,
वोटबैंक,
समान नागरिक संहिता
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
जन-गण-मन में लोकतंत्र कहाँ है?
भारत में लोकतंत्र कहाँ है ? कहीं नहीं लेकिन अराजकता हर कहीं हैं। संसद में, विधानसभाओं में, विधानसभाओं में होने वाली मारपीट में, केन्द्र सरकार में, राज्य सरकार में, मंत्रियों में, नेताओं में, राजनीतिक दलों में, सांसदों में, सांसदों द्वारा संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसा लेने में, विधायकों में, चुनावों में, चुनावी प्रत्याशियों में, केन्द्रीय विभागों व कर्मचारियों में, राज्य सरकार के विभागों व कर्मचारियों में, पुलिस में, सेना में, गरीबों के शोषण में, विदर्भ के कपास किसानों की आत्महत्याओं में।
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